लेखक- प्रशांत जोशी
सुधा को अपनी पीठ पर मनोज भैया के हाथ की कसावट महसूस होने लगी. मनोज के हाथ उस की पूरी पीठ पर रेंग रहे थे. उसे यह समझ में आ गया कि मनोज भैया का यह स्पर्श कुछ और ही खोज रहा है, लेकिन उसे यह स्पर्श अच्छा लग रहा था. धीरेधीरे मनोज भैया के हाथ उस की पीठ से उस के गालों पर आ गए. उन्होंने सुधा के आंसू पोंछे, सुधा ने कुछ नहीं कहा. मनोज भैया को डर था कि वह न जाने कैसे बरताव करेगी.
सुधा को जैसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. वह मनोज भैया के गले ही लगी हुई थी. करीब 5 मिनट तक दोनों गले लगे रहे. इस दौरान मनोज भैया ने उस की पीठ, सिर और गालों पर जम कर हाथ आजमाए. उन्होंने सुधा से पूछा कि उसे बुरा तो नहीं लगा. उस ने बिना कुछ बोले सिर हिला कर जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’
मनोज भैया ने इस बार सुधा के गालों पर अपने होंठ रख दिए. सुधा उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जहां विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण अपने चरम पर होता है.
सुधा मनोज दोनों भी शायद ऐसे ही आकर्षण के वशीभूत थे. कब सुधा अपना सबकुछ मनोज भैया को सौंप बैठी, उसे पता ही नहीं लगा. मनोज भैया काफी देर तक उस के जिस्म से खेलते रहे, उस के हर अंग पर अपना अधिकार जमाते रहे. सुधा को मनोज भैया का ये अंदाज भी अच्छा लग रहा था और अंदर ही अंदर इस बात का डर भी था कि कहीं वह कुछ गलत तो नहीं कर रही है.