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‘‘ठीक हो जाएगा सबकुछ, परेशान मत हो, सत्यम...मंदी कोई हमेशा थोड़े ही रहने वाली है...एक न एक दिन तुम दोबारा अमेरिका चले जाओगे...उसी तरह बड़ी कंपनी में नौकरी करोगे.’’

मेरी बात में सांत्वना तो थी ही पर उन की स्वार्थपरता पर करारी चोट भी थी. मैं ने जता दिया था, जिस दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा तुम पहले की ही तरह हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चले जाओगे. सत्यम कुछ नहीं बोला, निरीह नजरों से मुझे देखने लगा. मानो कह रहा हो, कब तक नाराज रहोगी. बच्चों का दाखिला भी उस ने दौड़भाग कर अच्छे स्कूल में करा दिया.

‘‘इस स्कूल की फीस तो काफी ज्यादा है सत्यम...इस नौकरी में तू कैसे कर पाएगा?’’

‘‘बच्चों की पढ़ाई तो सब से ज्यादा जरूरी है मम्मी...उन की पढ़ाई में विघ्न नहीं आना चाहिए. बच्चे पढ़ जाएंगे... अच्छे निकल जाएंगे तो बाकी सबकुछ तो हो ही जाएगा.’’

वह आश्वस्त था...लगा सौरभ ही जैसे बोल रहे हैं. हर पिता बच्चों का पालनपोषण करते हुए शायद यही भाषा बोलता है...पर हर संतान यह भाषा नहीं बोलती, जो इतने कठिन समय में सत्यम ने हम से बोली थी. मेरा मन एकाएक कसैला हो गया. मैं उठ कर बालकनी में जा कर कुरसी पर बैठ गई. भीषण गरमी के बाद बरसात होने को थी. कई दिनों से बादल आसमान में चहलकदमी कर रहे थे, लेकिन बरस नहीं रहे थे. लेकिन आज तो जैसे कमर कस कर बरसने को तैयार थे. मेरा मन भी पिछले कुछ दिनों से उमड़घुमड़ रहा था, पर बदरी थी कि बरसती नहीं थी.

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