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फिर सप्लाई का पानी पीने से उन का पेट खराब होने लगा तो जब भी सत्यम या उस का परिवार आता तो मैं बाजार से पानी की बोतल मंगा कर रखने लगी, लेकिन लाइट चली जाती तो उन्हें इनवर्टर की कमी खलती...गरमी में ए.सी. व कूलर की कमी अखरती, तो सर्दी में एक अच्छे ब्लोवर की कमी...मतलब कि कमी ही कमी...नाश्ते में सबकुछ चाहिए. पर सत्यम व नीमा कभी यह नहीं सोचते कि जिन सुविधाओं के बिना उन्हें दोचार दिन भी बिताने भारी पड़ जाते हैं उन्हीं सुविधाओं के बिना मातापिता ने पूरी जिंदगी कैसे गुजारी होगी और अब बुढ़ापा कैसे गुजार रहे होंगे. सत्यम पर क्षमता से अधिक खर्च न कर क्या वे अपने लिए छोटीछोटी मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटा सकते थे? पर उस समय तो लगता था कि हमारा बेटा लायक बन जाएगा तो हमें क्या कमी है. सौ सुविधाएं जुटा देगा वह हमारे लिए.

सत्यम कभी नहीं सोचता था कि वह जूस पी रहा है तो मातापिता को बुढ़ापे में एक कप दूध भी है या नहीं...जरूरी दवाओं के लिए पैसे हैं या नहीं. उन का तो यही एहसान बड़ा था कि वे दोनों इतने व्यस्त रहते हैं...इस के बावजूद जब छुट्टी मिलती है, तो वे उन के पास चले आते हैं, नहीं तो किसी अच्छी जगह घूमने भी जा सकते थे.

सत्यम का परिवार जब भी आता, उन को सुविधाएं देने के चक्कर में मैं अपना महीनों का बजट बिगाड़ देती. उन के जाते ही फिर उन के अगले दौरे के लिए संचय करना शुरू कर देती.

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