https://audiodelhipress.s3.ap-south-1.amazonaws.com/Audible/ch_a097_000001/0641_ch_a097_000016in_rev1_s1b_namaste_ji_gh.mp3सुबह के समय नितिन के फैक्टरी जाने से पहले वह आने लगी थी ताकि अंकिता को वह संभाल सके और मैं उन के लिए अच्छे से नाश्ता तैयार कर सकूं. जब कभी नितिन आयशा के सामने आ जाते तो वह हलका सा मुसकराती हुई कहती-‘नमस्ते जी.’
उस का मुसकराने का अंदाज बड़ा ही शर्मीला था. नितिन भी उसी के अंदाज में मुसकराते हुए जवाब देते थे. आयशा जब भी मेरे पास बैठती तो हमारे बारे में ही पूछती. कभी पूछती थी कि आंटीजी आप की ‘लवमैरिज’ है क्या? कभी कहती थी कि आंटीजी, अंकलजी बहुत ‘स्मार्ट’ हैं, आप ने कहां से ढूंढ़ा इन्हें? जाने कब भोलेपन में मैं ने वे सारी बातें नितिन को बता दी थीं. वक्त गुजरता जा रहा था.
एक दिन रविवार की शाम को मैं रसोई में खाना पका रही थी और नितिन पहली मंजिल पर अपने बैडरूम में टेलीविजन देख रहे थे. मांजी रसोई के साथ लगते अपने कमरे में बैठ कर कोई किताब पढ़ रही थीं. अंकिता को भी आयशा के साथ पहली मंजिल पर बच्चों के कमरे में खेलने के लिए छोड़ा हुआ था. मुझे अचानक याद आया कि नितिन रात के खाने में कभीकभार प्याज तो खा ही लेते हैं इसलिए सोचा कि चलो क्यों न काटने से पहले पूछ ही लिया जाए. पहले तो आवाज लगाई थी. नितिन ने टेलीविजन की आवाज इतनी तेज कर रखी थी कि कोई फायदा न जान मैं सीढि़यां चढ़ते हुए अपने बैडरूम की तरफ चल दी थी. मैं ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया तो जो देखा उसे देखने के साथ तो मेरी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई थी. मैं कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी, जो मेरे सामने हो रहा था.