एक सिंहक रिश्ते की शिकार औरत का पूरा व्यक्तित्त्व ही बदल जाता है. वह अपने
में सिमट कर रह जाती है. ईमान अब अकसर घबराई रहती, संकोच करती रहती. सचिन पूछा करता, ‘‘तुम्हारे आत्मविश्वास को क्या हो गया है? कैसी दब्बू सी हो गई हो तुम...’’
ऐसी बातों का कोई जवाब न था ईमान के पास पर बारबार ऐसे शब्द उस के आत्मविश्वास को और भी गिरा देते थे. किसी शिक्षित, आज की लड़की के लिए यह बेहद मुश्किल घड़ी थी. वह यह जानती थी कि वह यह एक गलत रिश्ते में है पर फिर भी स्वीकार नहीं पा रही थी कि वह इतनी बेबस हो चुकी है. ये रिश्ता उस के लिए एक कारागार की तरह हो गया था जहां उस की आवाज कैद थी, उस का शरीर बंद था और मन भी. कैसे किसी को कहे कि 21वीं सदी की इतनी पढ़ीलिखी, एक आत्मनिर्भर औरत होते हुए भी उस की आज यह हालत थी. दरअसल, परिवार के विरुद्ध जा कर उस ने जो कदम उठाया था उसी को गलत स्वीकारना बेहद कठिन हो रहा था. अपनी इच्छा से चुने रिश्ते में कमी निकालने की हिम्मत करे तो कैसे? लोग क्या कहेंगे?
‘‘मेरा ममेरा भाई मथुरा में रहता है. वह कुछ दिन हमारे पास रहने आएगा. 10वीं कक्षा में है, उसे कुछ कोचिंग का पता करना है यहां,’’ एक शाम सचिन ने बताया.
‘‘हां, बड़े शहर में अच्छे कोचिंग सैंटर मिल जाते हैं,’’ ईमान ने उस की हां में हां मिलाई. ‘‘बता देना कब आ रहा है और उसे क्या पसंद है खाने में.’’