विवाह स्मृतियों का एक पिटारा ही तो है जिस में अगर अच्छी और सुखद यादों के चित्र ज्यादा समेटे हुए हों तो उस विवाह को कामयाब कहा जा सकता है. विवाह पलों में सिमट सकता है, यह और बात है कि किन पलों को भुला दिया जाए और किन लमहों की यादों को करीने व खूबसूरती से संजोया जाए.
अब मैं जान गई हूं कि छोटीछोटी बातों पर शादी में दरारें आती हैं. एक कहावत है कि पत्थर अंतिम चोट से टूटता है मगर पहले की गई चोटें भी बेकार नहीं जातीं. शादी को कायम रखने के लिए उसे किसी भी प्रकार के वैचारिक हमलों से बचाना चाहिए. यह सोच कर शादी नहीं करनी चाहिए कि यह तो करनी ही है क्योंकि सब करते हैं. इसीलिए भी शादी नहीं करनी चाहिए कि बच्चे चाहिए. बच्चे तो गोद भी लिए जा सकते हैं. किसी काल्पनिक सुरक्षा के लिए शादी करना बेकार है क्योंकि कोई ऐसी चीज है ही नहीं.
शादी में 2 अनजान लोग सारी उम्र साथ गुजारने का प्रण लेते हैं और एक धुंधले आकर्षण के साथ सारा जीवन साथ रहने को तैयार हो जाते हैं. कुछ डरपोक लोगों के लिए यह एक खतरनाक खेल है. कुछ अन्य के लिए यह एक मूर्खतापूर्ण कदम है. एक तर्कहीन यात्रा है. कुछ मान लेते हैं कि शादी एक पागलपन है, हताशा से उपजी विवशता है और अनिश्चितताओं से परिपूर्ण है.
मेरी बहन ने प्रेम कर के बिना किसी औपचारिक रस्म, कसम या शादी के अपने दोस्त के साथ रहने का मन बना लिया था. उसे विश्वास था कि टिकना हुआ तो यह बंधन भी खूब चलेगा वरना मांपापा की शादी में कितनी कसमें, रस्में और रिश्तेदार जुड़े थे, वह तो एक दिन भी ठीक से नहीं निभ पाई. बहन अपनी जगह ठीक थी.