पर समीर को तो लगता कि सब सुहानी को बेवकूफ बनाते हैं. उन के कानों पर जूं न रेंगती. उन के पास तो वक्त ही वक्त था इन सब बातों पर ध्यान देने के लिए. सुहानी कई कामों में लगी रहती. कई सामाजिक कामों से भी उस ने खुद को जोड़ रखा था. वह एक लेडीज क्लब की मैंबर भी थी. उसे समीर की इन बेकार की बातों से उलझन होती. वह चाहती, समीर भी अपनी नियमित दिनचर्या बनाएं, ताकि उन की सेहत भी ठीक रहे और वे किसी सामाजिक संस्था से भी जुड़ें जिस से व्यस्त रहें और से उन की मानसिक सेहत भी ठीक रहे.
सोचतेसोचते सुहानी पार्क में पहुंच गई. रोज वह पास की ही सड़क पर वाक कर लेती थी, पर उस दिन वह घर से थोड़ी दूर पार्क में चली गई थी. वहां हर तरह, हर उम्र के स्त्रीपुरुष थे. कोई दौड़ रहा था, कोई चल रहा था, कोई कसरत कर रहा था.
सुहानी थोड़ी देर बैंच पर बैठ गई. बस, उसी दिन से सुहानी के दिमाग में एक तरकीब आई समीर को बदलने की. बोलने से तो समीर कभी नहीं मानेंगे, उसे पता था. देखते हैं आगेआगे होता है क्या. सुहानी होंठों ही होंठों में मुसकराई और फिर उठ कर चलने लगी. इस तरह से पूरा घंटा पार्क में बिता कर वह घर वापस आ गई.
‘‘आज तो बहुत देर कर दी, रोज तो आधे घंटे में वापस आ जाती थी,’’ समीर उस के चेहरे को देख कर घूरते हुए बोले.
‘‘आज से पार्क जाना शुरू कर दिया है,’’ सुहानी एक मस्त अंगड़ाई सी ले कर कुरसी पर बैठ कर जूते के फीते खोलती हुई बोली, ‘‘मजा आ गया आज तो, वहां तो बहुत लोग आते हैं हर उम्र के.’’ वह मजे से एक आंख दबा कर आगे बोली, ‘‘फोर्टीज से ले कर सिक्सटीज तक के. इस से ऊपर के भी आते हैं. जल्दी ही नए दोस्त बन जाएंगे, फिर जौगिंग का अपना ही मजा आएगा.’’