उस की इच्छाओं की पूर्ति करतेकरते भी उस से गालियां सुनती है, मार खाती है. पल्लवी उन मूर्खों में से थी जिस ने खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा था. अपनी गलतियों के कारण वह संजीव की बिछाई शतरंज की बिसात पर सिर्फ एक मुहरा बन कर रह गई थी. पल्लवी ने आंसू पोंछे और मन मार कर संजीव को खाना परोसने चली गई.
इस के बाद कुछ दिनों तक तो संजीव शांत रहा, लेकिन वह ₹10 हजार रुपयों पर आखिर कितने दिन ऐश करता? उस ने पल्लवी को शरद से ₹1 लाख निकलवाने के लिए कहा और इस के लिए योजना भी समझा दी.
पल्लवी ने संजीव के कहे अनुसार अभिनय करना शुरू कर दिया. एक दोपहर शरद के साथ खाना खाते समय उस ने अपनी छोटी बहन से फोन पर बात करने का नाटक किया और रोने लगी. पल्लवी को इस तरह रोता देख कर शरद परेशान हो गया.
“पल्लवी तुम इस तरह क्यों रो रही हो? घर पर सब ठीक है न?” शरद ने पूछा.
“शरद मेरी मां की तबीयत बहुत खराब है. मुझे उन के औपरेशन के लिए ₹1 लाख का इंतजाम करना होगा और वह भी 2 दिनों के अंदर. मैं इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगी?" पल्लवी ने परेशान होने का नाटक किया.
"तुम फिक्र मत करो पल्लवी. कोई न कोई इंतजाम हो जाएगा," शरद ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा.
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“कैसे फिक्र न करूं शरद. मेरा बैंक अकाउंट संजीव खाली कर चुका है. जो थोड़ेबहुत गहने थे वे मैंने कर्ज उतारने के लिए बेच दिए थे. अभी कुछ दिन पहले मेरे पास घर का किराया देने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी. उस वक्त तुम ने मेरी मदद की थी. अब मैं किस के आगे हाथ फैलाऊं?” पल्लवी अपने चेहरे को हथेलियों के पीछे छिपा कर रो पड़ी.