परसों ही तो रूही मिताली के घर आई थी. दोपहर का समय था और तेज धूप में रूही का यों घर पर आना उसे बहुत ही खटका था. एक तो वैसे ही उसे रूही पसंद नहीं थी. रूही के मुंह खोलते ही मिताली ने कहा था, ‘संजय तो घर पर नहीं है. आप घर पर क्यों आ गईं?’
‘मुझे आप से ही मिलना था,’ रूही की बात सुनते ही मिताली ने उसे ऐसे देखा था जैसे किसी कौकरोच को देख कर उसे झाड़ू से बाहर फेंकने का मन होता है. मिताली अभी सोच रही थी कि वह फिर बोली, ‘मैं आप को यह डायरी देने आई थी, हो सके तो इसे पढ़ लें.’
‘आप की डायरी मैं क्यों पढ़ूं?’ मिताली ने डायरी पकड़ने के लिए हाथ तक आगे नहीं बढ़ाया.
‘आप को ही फायदा होगा. ले लीजिए.’
‘हैं? मुझे? कैसे?’ न चाहते हुए भी मिताली का हाथ डायरी लेने के लिए बढ़ गया.
रूही ने डायरी दी और बोली, ‘आप को पता नहीं, विश्वास हो या न हो, पर मैं बता दूं कि मैं संजय के बच्चे की मां बनने वाली हूं.’
और वह उलटे पांव लौट गई. मिताली हक्कीबक्की उसे देखती रह गई. ऐसा लगा मानो रूही उस के मुंह पर चांटा जड़ कर चली गई थी.
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लुटीपिटी सी मिताली डायरी को ऐसे देखने लगी मानो कोई उस के हाथ में अंगारा रख गया हो. इतनी बड़ी बात वह इतनी आसानी से कह कर चली गई. उस ने मेरे मन में उमड़ रहे भावों को जानने की कोशिश भी नहीं की? क्या रूही के शब्दों की सचाई डायरी में बंद है? जब डायरी खोली तो जगहजगह लेखों का, उस के बच्चों का या उलटेसीधे शेरों की बातें ही दिखीं. खीज कर मिताली ने डायरी बंद कर दी. सब झूठ होगा. जानबूझ कर संजय को नीचा दिखाने के लिए वह बकवास कर गई होगी. शायद उन की आपस में लड़ाई हो गई है और वह संजय के घर में फूट डालना चाहती है. उस समय कुछ ऐसा ही सोचा था मैं ने. पर फिर भी मन के कोने में कहीं शक पैदा हो गया था, जिसे मैं ने संजय के सामने उगल दिया था. तब संजय सकपकाया था, उस ने सफाई पेश की. मिताली भी उस से बहस में उलझ गई थी. पर कोई नतीजा नहीं निकला.