‘‘गाड़ी के स्पार्क प्लग तो ठीक से लगा नहीं सकता और ख्वाब देख रहा है इंजीनियर बनने के,’’ साहिल को बेटे पर झुंझलाते देख कर रहिला मुसकरा पड़ी, तो साहिल और झुंझला उठा.
‘‘इस में मुसकराने वाली क्या बात है?’’ उस ने पूछा.
‘‘वैसे ही कुछ याद आ गया. इस वर्ष दिल्ली के जिस मशहूर न्यूरो सर्जन डा. गुलाम रसूल को पद्मविभूषण मिला है न वह बचपन में मेरा पड़ोसी था. एक बार बावर्ची के न आने पर चाचीजान ने रसूल को मछली साफ कर काटने को कहा तो वह कांपते हुए मछली ले कर मेरे पास आया. मिन्नतें कर के मुझ से मछली कटवाई और आज देखो कितना सफल सर्जन है.’’
‘‘अचानक इतनी हिम्मत कैसे आ गई?’’
‘‘पता नहीं, क्योंकि तब तो अब्बू का तबादला होने की वजह से रसूल के परिवार से तअल्लुकात टूट गए थे. फिर जब दोबारा लखनऊ आने पर मुलाकात हुई तो पता चला कि रसूल पीएमटी की तैयार कर रहा है. उस की अंगरेजी हमेशा कमजोर रही, इसलिए उस ने मिलते ही मुझ से मदद मांगी.’’
‘‘और तुम ने कर दी?’’
‘‘हां, बचपन से ही करती आई हूं. अंगरेजी में वह हमेशा कमजोर रहा. पीएमटी तो अच्छे नंबरों से पास कर ली और लखनऊ मैडिकल कालेज में दाखिला भी मिल गया, लेकिन अंगरेजी कमजोर ही थी. अत: रोज अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर मैं उसे अंगरेजी बोलना सिखाती थी.’’ तभी फोन की घंटी बजी और बात वहीं खत्म हो गई. आज उसी बात को याद कर के साहिल रहिला से कह रहा था कि वह उस के बौस के परिवार के साथ दिल्ली जाए और डा. गुलाम रसूल से अपने संपर्क के बल पर तुरंत अपौइंटमैंट ले कर बौस का औपरेशन करवा दे. साहिल के बौस जनरल मैनेजर राजेंद्र को फैक्टरी में ऊंचाई से गिरने के कारण रीढ़ की हड्डी में गहरी चोट लगी थी. डाक्टरों ने तुरंत किसी कुशल सर्जन द्वारा औपरेशन करवाने को कहा था, क्योंकि देर और जरा सी चूक होने पर वे उम्र भर के लिए अपाहिज हो सकते थे.