किरण ने गहरी सांस ली, ‘‘हैं तो यहीं पड़ोस में, लेकिन मुलाकात कम ही होती है...’’
‘‘क्यों? बहुत व्यस्त हो गए हो तुम दोनों या कुछ खटपट हो गई है?’’ देव ने बात काटी.
‘‘इतने व्यस्त भी नहीं हैं और न ही हमारी जानकारी के अनुसार कोई खटपट हुई है. मुझे ही कोई गलतफहमी हो गई है शायद.’’ किरण हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘उसी बारे में आप से बात करना चाह रही थी. आप के बारे में अकसर पढ़ती रहती हूं. कई बार आप से मिलना भी चाहा, मगर समझ नहीं आया कैसे मिलूं. सर, मुझे लगता है आलोक ने अपने दादाजी की हत्या की है.’’
देव चौंक पड़ा कि तो यह वजह है शादी न करने की. लेकिन किरण से पूछा, ‘‘शक की वजह?’’
‘‘जिस रात दादाजी की हत्या हुई मुझे लगता है मैं ने आलोक को छत से कूद कर भागते हुए देखा था. लेकिन आलोक का कहना है कि वह उस समय पिछली सड़क पर हो रही अपने दोस्त की शादी के मंडप में था. दादाजी की हत्या की सूचना भी उसे वहीं मिली थी.’’
‘‘लेकिन तुम्हें लगता है कि भागने वाला आलोक ही था?’’
‘‘जी, सर हत्या का कोई मकसद भी सामने नहीं आया. न तो कुछ चोरी हुआ था और न ही दादाजी की किसी से कोई दुश्मनी थी.’’
‘‘हत्या से किसी को व्यक्तिगत लाभ?’’
‘‘सिर्फ आलोक को जो केवल मुझे मालूम है क्योंकि दूसरों की नजरों में तो दादाजी वैसे ही सबकुछ उस के नाम कर चुके थे.’’
‘‘जो तुम्हें मालूम है या जो भी तुम्हारा अंदाजा है, मुझे विस्तार से बताओ किरण. मैं वादा करता हूं मैं जहां तक हो सकेगा तुम्हारी मदद करूंगा?’’