‘‘वैसा ही रेशमी कुरतापाजामा जैसा आलोक पहने हुए था. पापा ने मेरे छोटे भाई बंटी को फंक्शन हौल से आलोक को लाने भेजा. मेरा खयाल था कि आलोक वहां नहीं होगा, लेकिन बंटी आलोक को ले कर आ गया. गौर से देखने पर भी आलोक के कपड़ों पर पेड़ पर चढ़नेउतरने के निशान नहीं थे. और आलोक भी परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही हैरान था...’’
‘‘फिर तुम्हें यह शक क्यों है कि हत्यारा आलोक ही है?’’ देव ने बीच में पूछा.
‘‘क्योंकि अगले दिन जब पुलिस ने पेड़ के नीचे जूतों के निशान देखे तो वे जोधपुरी जूतियों के थे जिन्हें आलोक उस समय भी पहने हुए था. सही साइज का पता नहीं चल रहा था क्योंकि भागने की वजह से निशान अधूरे थे. आलोक शक के घेरे में आ गया, मगर उस ने अपने बचाव में रवि की शादी की वे तसवीरें दिखाई, जिन में वह उस समय तक रवि के साथ था जब तक बंटी उसे बुलाने नहीं गया था. पुलिस ने भले ही उसे छोड़ दिया हो, लेकिन मुझे लगता है कि वह आलोक ही था. एक तो पेड़ पर से चढ़नेउतरने का रास्ता उसे ही मालूम है, दूसरे दादाजी की मौत से फायदा भी उसे ही हुआ.
‘‘13वीं के तुरंत बाद उस ने एजेंसी लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. रहा सवाल तसवीर का, तो खाने और फेरों के दरम्यान तो लगातार तसवीरें कहां खिंचती हैं सर? फोटोग्राफर भी उसी दौरान खाना खाते हैं. फंक्शन हौल घर के पीछे ही तो था. दीवार फांद कर आनेजाने और तकिए से मुंह दबा कर किसी बुजुर्ग को मारने में समय ही कितना लगता है?’’