हर रोज की तरह सविता सुबहसवेरे स्कूल जाने के लिए उठ गई, क्योंकि उस की 12वीं कक्षा की परीक्षाएं चल रही थीं. उस का सैंटर दूसरे स्कूल में पड़ा था, जो काफी दूर था. वह टूंडला में एक राजकीय गर्ल्स इंटर कालेज में पढ़ती थी.
सुबह 7 बजे के आसपास कमरे में तैयार हो रही सविता चिल्लाई, ‘‘मां, मेरा लंच तैयार हो गया क्या?’’
मां ने भी किचन में से ही जवाब दिया, ‘‘नहीं, अभी तो तैयार नहीं हुआ है. थोड़ा रुक, मैं तैयार किए देती हूं.’’
‘‘मां, मैं लेट हो रही हूं. बस स्टैंड पर मेरी सहेलियां मेरा इंतजार कर रही होती हैं. लंच तैयार करने के चक्कर में और भी देरी हो जाएगी,’’ झल्लाहट में सविता कह रही थी.
मां भी गुस्सा होते हुए बोलीं, ‘‘एक तो समय पर उठती नहीं है, फिर जल्दीजल्दी तैयार होती है.’’
सविता अपने को शांत करते हुए बोली, ‘‘कोई बात नहीं मां, तुम परेशान न हो. मैं वहीं कुछ खा लूंगी. आप जल्दी से चायनाश्ता करा दो.’’
मां ने जल्दीजल्दी चाय बनाई और नाश्ते में 2-3 टोस्ट दे दिए. जल्दीजल्दी मां ने पर्स से पैसे निकाल कर सविता को दिए और कहा, ‘‘वहीं कुछ खापी लेना.’’
‘‘ठीक है मां,’’ सविता मम्मी की ओर देखते हुए बोली.
स्कूल जाते समय जल्दीजल्दी सविता मां के गले लगी और मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा मां, मैं चलती हूं.’’
मां भी गुस्सा छिपाते हुए बोलीं, ‘‘अरे रुक, मुंह तो मीठा करती जा. और सुन, पेपर अच्छे से करना.’’
‘‘जी,’’ कह कर सविता घर से दौड़ लगाती निकल गई और मां घर के कामों में बिजी हो गई.
17-18 साल की सविता अपनेआप को किसी परी से कम नहीं समझती. गोरा रंग, तीखे नैननक्श, चंचल स्वभाव सहज ही हर किसी को अपनी ओर लुभाता. जब भी वह बाहर निकलती, मनचले फब्तियां कसते. वह इन को सबक सिखाना चाहती, पर फिर कुछ सोच कर चुप हो जाती.