‘‘उज्ज्वल के बारे में नहीं सोचता तू नवल. बड़ा भाई है, घर में जवान बहन दीप्ति है. उस की शादी नहीं करनी क्या? कैसेकैसे दोस्त हैं तेरे? किस हालत में घर आता है? छोड़ क्यों नहीं देता उन्हें?’’ जयंती कभी धीरेधीरे बोल पातीं.
‘‘हजार बार कहा उन्हें कुछ मत कहिए मां. उन्होंने बाबूजी का बिजनैस संभालने में बहुत मदद की है वरना मुझे आता ही क्या था. उन्हीं सब की वजह से बिजनैस में इतनी जल्दी इतनी तरक्की हुई है.’’
वह भड़क उठता, ‘‘वे सब ऐसेवैसे थोड़े ही हैं. अच्छे घरों के हैं. थोड़ा तो सभी पीते हैं. आजकल वे सब कंट्रोल में रहते हैं. मुझे ही जरा सी भी चढ़ जाती है. कल से नहीं पीऊंगा. वे सभी तो उज्ज्वल को अपना छोटा भाई और दीप्ति को छोटी बहन मानते हैं... और आप क्या बातें करती हैं मां कि...’’ वह आगबबूला होने लगता.
दीप्ति कुछ कहने को होती तो नवल उसे भी झिड़क देता. उज्ज्वल भी सहम जाता. घर का सारा दारोमदार नवल पर था. दीप्ति अपना बीएड का कोर्स पूरा कर रही थी और उज्ज्वल 8वीं की परीक्षा की तैयारी. दोनों नवल के कुछ देर बाद शांत हो जाने पर अपनेअपने काम में अपने को व्यस्त कर लेते.
मां की अनुभवी आंखें हर वक्त नवल के दोस्तों का सच ही बयां करती रहती हैं. पर भैया को दिखता ही नहीं. कितनी बार उस ने नवल के दोस्तों की गंदी नजरें, गंदी हरकतें झेली हैं. नवल को थमाने के बहाने वे कहांकहां उसे छूने की कोशिश नहीं करते... कैसे भैया को विश्वास दिलाए... वे अपने दोस्तों के खिलाफ कुछ भी मानने को तैयार नहीं होते. उलटा उसे झाड़ देते. दीप्ति की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आंसू निकलने लगते तो बाथरूम में बंद हो जी भर कर रो लेती.