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शादी के बाद मीनू ससुराल आई तो घर के लोगों ?की सोच काफी पुरानी थी. उसे बातबात पर नीचा दिखाने की कोशिश की जाती थी. फिर भी मीनू सब को उचित सम्मान देती थी, सब का खयाल रखती थी.
कुछ दिनों बाद वह अपने मायके आई तो वहां भी खुद के लिए घर वालों का व्यवहार बदला पाया. छोटा भाई जहां लफंगे दोस्तों के साथ घूमने लगा था, वहीं छोटी बहन रेनू गलत सोहबत में पड़ गई थी.
यह सब देख कर मीनू उदास तो हुई पर फिर मन ही मन ठान लिया कि वह अपनी बहन और भाई को सही रास्ते पर ला कर ही दम लेगी.
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मैं अचानक अपने कमरे में जा कर अपने सामान की दोनों गठरियां उठा लाई. कपड़े तो मैं ने घर में काम करने वाली को देने के लिए आंगन में ही रख दिए पर पुस्तकों को जा कर मां के बड़े संदूक में रख आई. मैं ने बड़े चाव से पापा व मम्मी की पसंद का खाना बनाया. मैं किचन से निकल ही रही थी कि मम्मी मुझे आवाज दे कर बुलाने लगीं. वहां जा कर देखा कि मम्मी पापा के रिटायरमैंट में मिले उपहारों का अंबार लगाए बैठी थीं. देखते
ही बोलीं, ‘‘मीनू इधर आ कर देख. तुझे क्याक्या ले जाना है... तेरे जाने की तैयारी कर रही थी. मैं सोच रही थी तुझ से पूछ कर ही तेरा सामान पैक करूं?’’
मैं हैरान रह गई कि मुझ से पूछे बिना ही मेरी जाने की तैयारी शुरू हो गई. मैं मन ही मन टूट सी गई, क्योंकि मैं तो 8 दिन रहने का सपना संजो कर आई थी. यहां तो चौथे दिन ही विदा करने का मन बना लिया. अनुभवी मां ने शायद हम तीनों भाईबहनों के ऊपर गहराते तनाव के बादल और गहरे होते देख लिए थे. मैं ने समझदारी से काम लेते हुए चेहरे पर निराशा का भाव न लाते हुए बड़ी सहजता से कहा, ‘‘अरे नहीं मम्मी, अभी 2 महीने पहले ही तो सब कुछ ले कर विदा हुई हूं. आप फिर शुरू हो गईं?’’