अब तक की कथा :
नील लंदन से अपनी मां के साथ लड़की देखने भारत आया था. दिया व उस के परिवार के ठाटबाट से प्रभावित नील व उस की मां ने विवाह के लिए तुरंत हां कर दी थी. अपनी दादी की कन्यादान करने की जिद तथा पंडित की ‘महायोग’ की भविष्यवाणी ने दिया के पत्रकार बनने के सपने को चिंदीचिंदी कर के हवा में बिखरा दिया.
अब आगे..
यशेंदु के मन में कहीं कुछ हलचल व बेचैनी थी. एक तरफ उन्हें दिया रूपी घर की रोशनी के विलीन हो जाने का गम सता रहा था तो दूसरी ओर मां के प्रति उन का दायित्व व आदर उन्हें उन के चरणों में झुकने को मजबूर कर रहे थे. आज की युवतियों के लिए केवल पति पा जाना ही उपलब्धि नहीं होती, वे पहले अपने भविष्य के प्रति सचेत व चौकन्नी होती हैं. उस के बाद विवाह के बारे में सोचती हैं. दिया का विवाह हुआ पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था कि वाकई उसी का विवाह हुआ है.
दिया सुंदर थी. मुसकराते मुख पर सदा एक चमक बनी रहती. इसी दिया को उस की सहेली के भाई के विवाह में नाचते हुए जब एक परिवार ने देखा तो झट से उन्हें लंदन में बसे हुए अपने घनिष्ट मित्र की याद आई. मित्र की मृत्यु हो चुकी थी, उन की पत्नी और बेटा लंदन में ही रहते थे. मां अपने सुपुत्र के लिए सुंदर, सुघड़ बहू की तलाश कर रही थी. दिया को जिन लोगों ने पसंद कर लिया था वे खोजते हुए दिया की दादी के पास पहुंच गए थे और उन्होंने सारी बात दादी के समक्ष खोल कर रख दी थी. लंदन वाला लड़का अपनी मां के साथ जल्दी ही भारत में दुलहन खोजने आने वाला था. इस से पहले भी वह दुलहन की तलाश में 2-3 बार भारत के चक्कर लगा चुका था. परंतु कहीं पर जन्मपत्री न मिलती तो कहीं उन के हिसाब से सुंदर, सुशील कन्या न मिल पाती. दिया को पसंद करते ही लड़के के पिता के मित्र ने दिया की दादी से मिल कर जन्मपत्री बनवा ली थी और इस प्रकार दिया के जीवन पर विवाह की मुहर लगाने का फैसला करना निश्चित होने जा रहा था.