सुषमा की शादी हुई थी और वह पहुंच गई थी मानव लोक के डैनमार्क देश की खूबसूरत कोपनहेगन नगरी में. शुरू में इस गजब के शहर में पहुंच कर वह अपना अहोभाग्य ही मानती रही. चारों तरफ लंबे, सुनहरे बालों वाली जलपरियों समान लड़कियां, लंबेतड़ंगे गबरू जवान, हंसों से लदे तालाबों वाले हरेहरे उपवन, मजबूत खड़े मकान, चौड़ी मगर खाली सड़कें. धूप हो, पानी बरसे या बर्फ गिरे, यहां के लोगों को अपनी साइकिलें ऐसी प्यारी हैं जैसे पुराने जमाने के राजपूतों को अपनेअपने चेतक थे. पता चला कि इतनी आराम की जिंदगी बिताते हैं ये डैनिश लोग कि यहां के हर 10वें आदमी को शराब की लत लगी हुई है और हर दूसरा जोड़ा बिना मनमुटाव के शादी तोड़ देता है. मालूम चला कि यहां शादियां इस वजह से टूटती हैं कि यहां की औरतें अपने जीवनकाल में अन्य आदमी भी आजमाना चाहती हैं.
सुषमा सुंदर तो थी ही, जब उस की शादी उस लड़के से तय हुई जो दूसरे देश में इंजीनियर था तो सब ने खुशी जाहिर की थी. पर कोपनहेगन आ कर उसे कुछ ही दिनों में पता चल गया कि वह ऐसे देश में है जहां की बोली उस के लिए गिटपिट है.
पढ़ीलिखी होने के बावजूद वह न काम कर सकती है न बाहर जा कर लोगों से बातें. पति शंभु और उस के परिवार वालों पर सुषमा को बड़ा गुस्सा आया. सुषमा के लिए कई अच्छे रिश्ते आए थे और दोएक अमेरिका के भी थे. उसे लगने लगा कि उन लोगों ने लड़की ले कर ठग लिया था और जो हुआ था वह घाटे का सौदा था.