कहानी- मेहा गुप्ता
सूर्यकी पीली रेशमी किरणों ने पेड़ों के पत्तों के बीच से छनछन कर मेरी बालकनी में आना शुरू कर दिया है. यह मेरे लिए दिन का सब से खूबसूरत वक्त होता है. बालकनी में खड़ी हो सामने पार्क में देखती हूं तो कोई वहां बने जौगिंग पाथ पर दौड़ लगा कर पिछले दिन खाए जंक फूड से पाई कैलोरी को जलाने में जुटा है तो कोई सांसों को अंदरबाहर ले अपने जीवन की तमाम विसंगतियों से झूझने के लिए खुद को सक्षम बनाने में.
मेरी मां ने इन गतिविधियों को अमीरों के चोंचले नाम दे रखा है. कहती हैं छोटीछोटी जरूरतों के लिए अगर नौकरों पर निर्भर न रहें तो ये सब करने की नौबत ही न आए. हम लोग जब कुएं से पानी खींच कर लाया करती थीं तो वही हमारे लिए जौगिंग होती थी और चूल्हे की लौ को तेज करने के लिए जोर से फूंक देतीं तो वही प्राणायाम.
अब मां को कैसे समझाऊं कि जमाना बदल गया है, जमाने की सोच बदल गई है.जबकि मैं खुद कई मामलों में जमाने से बहुत पीछे हूं. मसलन, खाने के मामले में मैं रैस्टोरैंट जा कर पिज्जाबर्गर खाने से बेहतर घर की दालरोटी खाना पसंद करती हूं. बाहर का खाना मुझे सेहत और पैसे की बरबादी लगता है.
वैस्टर्न आउटफिट्स न पहन कर सलवारकमीज वह भी दुपट्टे के साथ पहनती हूं और सब से मुख्य बात सोशल मीडिया से गुरेज करती हूं. अब तक मुझे यह निहायत दिखावा, छलावा और समय की बरबादी लगता था पर इस बार अपनी सोलमेट से मिलने के लालच ने मुझे फेसबुक के गलियारों में भटकने को मजबूर कर ही दिया.