‘‘मीनाक्षीजी, आप के पास सोने का दिल है. मेरी बेटी आप के घर की बहू बन कर आती तो यह मैं उस का सौभाग्य मानता. मुझे पूरा विश्वास है कि वह इस घर में बेहद खुश व सुखी रहेगी. लेकिन अफसोस यह है कि अलका खुद इस रिश्ते में दिलचस्पी नहीं रखती है. मैं उसे राजी करने की कोशिश करूंगा, अगर वह नहीं मानी तो आप रोहन को समझा देना कि वह अलका को तंग न करे,’’ अशोकजी ने भावुक लहजे में मीनाक्षी से प्रार्थना की.
‘‘आप जैसे नेकदिल इनसान को जिस काम से दुख पहुंचे या आप की बेटी परेशान हो, वैसा कोई कार्य मैं अपने बेटे को नहीं करने दूंगी,’’ मीनाक्षी के इस वादे ने अशोकजी के दिल को बहुत राहत पहुंचाई.
अलका और रोहन के वापस लौटने पर इन दोनों ने उलटे सुर में बोलते हुए अपनीअपनी इच्छाएं जाहिर कीं तो उन दोनों को बहुत ही आश्चर्य हुआ.
‘‘अलका, तुम अगर रोहन को अच्छा मित्र बताती हो तो कल को अच्छा जीवनसाथी भी उस में पा लोगी. मीनाक्षीजी के घर में तुम बहुत सुखी और सुरक्षित रहोगी, इस का विश्वास है मुझे. मैं दबाव नहीं डाल रहा हूूं पर अगर तुम ने यह रिश्ता मंजूर कर लिया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा,’’ अपनी इच्छा बता कर अशोकजी ने बेटी का माथा चूम लिया.
‘‘रोहन, अलका खुशीखुशी ‘हां’ कहे तो ठीक है, नहीं तो तुम इसे किसी भी तरह परेशान कभी मत करना. भाई साहब का ब्लड प्रेशर ऊंचा रहता है. तुम्हारी वजह से इन की तबीयत खराब हो, यह मैं कभी नहीं चाहूंगी,’’ मीनाक्षी ने बड़े भावुक अंदाज में रोहन से अपने मन की इच्छा बताई.