‘‘हां, बोलो तानिया, कैसी हो,’’ फोन उठाते ही वरुण ने तानिया का स्वर पहचान लिया.
‘‘मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारी क्या समस्या है वरुण?’’ तानिया ने तीखे स्वर में पूछा.
‘‘कैसी समस्या?’’
‘‘वह तो तुम्हीं जानो पर तुम से बात करना तो असंभव होता जा रहा है. घर पर फोन करो तो मिलते नहीं हो. मोबाइल हमेशा बंद रहता है,’’ तानिया ने शिकायत की.
‘‘आज पूरा दिन बहुत व्यस्त था. बौस के साथ एक के बाद एक मीटिंगों का ऐसा दौर चला कि सांस लेने तक की फुरसत नहीं थी. मीटिंग में मोबाइल तो बंद रखना ही पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी. ‘‘बनाओ मत मुझे. तुम जानबूझ कर बात नहीं करना चाहते. मैं क्या जानती नहीं कि तुम अपनी कंपनी के उपप्रबंध निदेशक हो. तुम्हें फोन पर बात करने से कौन मना कर सकता है?’’
‘‘प्रश्न किसी और के मना करने का नहीं है पर जो नियमकायदे दूसरों के लिए बनाए गए हैं, उन का पालन सब से पहले मुझे ही करना पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.
‘‘यह सब मैं कुछ नहीं जानती. पर मैं बहुत नाराज हूं. फोन करकर के थक गई हूं मैं.’’
‘‘छोड़ो ये गिलेशिकवे और बताओ कि किसलिए इतनी बेसब्री से फोन पर संपर्क साधा जा रहा था?’’
‘‘वाह, बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं. याद है, आज संदीप ने तुम्हारे स्वागत में बड़ी पार्टी का आयोजन किया है.’’
‘‘याद रहने, न रहने से कोई अंतर नहीं पड़ता. मैं ने पहले ही कहा था कि मैं पार्टी में नहीं आ रहा. आज मैं बहुत व्यस्त हूं. व्यस्त न होता तो भी नहीं आता. मुझे पार्टियों में जाना पसंद नहीं है.’’