"तूने क्या सोच कर अपनी मां से मेरी शादी कराई ? जब देखो मैडम साधू माता के चरणों में पड़ी रहती है. दिन भर काम कर के मैं थकामांदा घर लौटता हूं कि चलो अब बीवी के साथ समय बिताऊंगा पर नहीं. बीवी तो कभी फ्री मिलती ही नहीं. कभी बाबा के आश्रम में तो कभी साधू माता के साथ फोन पर, कभी अपनी आश्रम की सहेलियों के साथ गायब रहती है तो कभी तुझ से बातें करने में मगन. मेरे पास आने का तो कभी समय ही नहीं है उस के पास. फिर क्यों मुझ से शादी कर मेरी जिंदगी खराब की?" निशा का तथाकथित डैडी यानी सौतेला पिता गुस्सा में बोले जा रहा था.
निशा कोई जवाब देने में असमर्थ थी. क्या करती? बातें तो उस की सही ही थीं। अपने पापा के मरने के बाद निशा ने काफी समय तक मां को अकेला और उदास देखा था. कॉलेज से उस के लौटने के बाद ही मां के चेहरे पर खुशी की चमक दिखाई पड़ती थी. वह कॉलेज के बाद का अपना सारा समय इसी प्रयास में निकाल देती कि किसी तरह मां खुश रहे. उन के होठों पर मुस्कान आ सके.
निशा का प्रयास रंग लाता। मां उस के साथ दुनिया के गम भुला कर खिलखिलाने लगतीं। तब उसे लगता जैसे वह दुनिया की सब से खुशहाल बेटी है. आखिर मां को मिला ही क्या था जीवन में? दिनरात ताने सुनाने वाली सास, हुक्का गुड़गुड़ ने वाले बीमार ससुर ,किशोर बेटे की असामयिक मौत का गम और फिर कम उम्र में ही विधवा हो जाने का दंश. आज के समय में मां के पास उस के सिवा अपना कहने वाला कौन था? मायके में भी एक भाई के सिवा कोई नहीं था और उस भाई का होना न होना बराबर था. वह सिंगापुर में रहता था और सालों में कभी मुलाकात होती थी.