पलट कर देखा, तो मुकीम अंगारे उगलती आंखों और विद्रूप चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान से बोला, ‘इतना सजधज कर स्कूल जा रही है, या कहीं मुजरा करने जा रही है.’ सुन कर मैं अपमान और लांछन के दर्द से तिलमिला गई, ‘हां तवायफ हूं न, मुजरा करने जा रही हूं. और तुम क्या हो, तवायफ की कमाई पर ऐश करने वाले.’
‘आज तो तु झे जान से मार डालूंगा मैं...ले, ले,’ कहते हुए मुकीम मेरे कमर से नीचे तक के लंबे घने खुले बालों को खींच कर घर के मुख्य दरवाजे पर ही पटक कर लातोंघूसों से मारने लगा. नई साड़ी तारतार हो गई. कुहनी, घुटना और ठुड्डी से खून बहने लगा. सड़क से आतेजाते लोग औरत की बदकिस्मती और मर्द की सरपस्ती का भयानक व हृदयविदारक दृश्य देखने लगे. ‘बड़ा जाहिल आदमी है, पढ़ीलिखी, नौकरीपेशा औरत के साथ कैसा जानवरों सा सुलूक कर रहा है,’कहते हुए औरतें रुक जातीं. जबकि मर्द देख कर भी अनदेखा करते हुए तटस्थभाव से आगे बढ़ जाते.
‘मियांबीवी का मामला है, अभी झगड़ रहे हैं 2 घंटे बाद एक हो जाएंगे. बीच में बोलने वाले बुरे बन जाएंगे. छोड़ो न, हमें क्या करना है,’ कहते और सोचते हुए पड़ोसी खिड़कियां बंद करने लगे और राहगीर अपनी राह पकड़ कर आगे बढ़ गए.
भूख, तंगदस्ती, शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न अपनी पराकाष्ठा पार करने लगा था. फिर भी मैं अपने और बच्चों की लावारिसी की खौफनाक कल्पना से डर कर 12 सालों तक चुप्पी साध कर मुकीम के घर में ही रहने के लिए विवश थी. लेकिन मुकीम ने अस्मिता पर चोट की तो मैं बिलबिला कर शेरनी की तरह बिफर गई, ‘लो मारो. और मारो मुझे. लो, बच्चों को भी मार डालो. अपनी तमाम खामियां और कमजोरियां मर्दाना ताकत से दबा कर सिर्फ मजबूर औरत पर जुल्म कर सकते हो न, बड़ा घमंड है अपने मर्द होने पर. जानती हूं मेरे बाद कई औरतों से कई बच्चे पैदा करने की ताकत है तुम में, लेकिन सच यह है कि इस के अलावा और कोई खूबी भी तो नहीं तुम में. इसलिए तो मेरे वकार, मेरी ईमानदारी को लहुलूहान कर के खुश होने का भ्रम पाल रखा है तुम ने.’