रमेश ने सोचा क्यों न सब से पहले विभा के आशिक की पत्नी को सच बताया जाए. जब उस की पत्नी को अपने पति की करतूतों के बारे में पता चलेगा तो वह अपने पति के विरुद्ध कठोर कदम उठाएगी. हो सकता है इस से विभा और उस के आशिक के संबंध टूट जाएं. नहीं भी टूटते, तो कम से कम जो तकलीफ मैं ने सही है, यही उस के आशिक को भी भुगतनी पड़ेगी. उस ने मेरा घर तोड़ने की कोशिश की, मैं उस का घर तोड़ कर कुछ तसल्ली तो महसूस करूंगा. और वह जासूस के दिए पते पर विभा के आशिक के घर पहुंचा.
विभा के आशिक का नाम सुमेरचंद था. कालेज में वह विभा के साथ पढ़ता था. उस की पत्नी घरेलू महिला थी. उस की 2 बेटियां थीं. वह कालेज में प्रोफैसर था. विभा से उस का प्रेम कालेज में था. शादी के बहुत बाद फेसबुक के जरिए यह प्रेम, अवैध संबंधों में परिणत हो चुका था. रमेश को टाइगर द्वारा दी गई जानकारी से यह भी पता चला था कि दोपहर में सुमेरचंद कालेज में या उस के घर में होता है. बैंक में एक घंटे काम करने के बाद रमेश सुमेरचंद के घर पहुंचा.
दरवाजा सुमेरचंद की पत्नी ने खोला. रमेश ने अपना परिचय दे कर थोड़ा समय मांगा. इस थोड़े से समय में उस ने सीडी दिखाई और सारी जानकारी दी. सुमेरचंद की पत्नी विभा से अधिक सुंदर और शिक्षित थी. रमेश द्वारा दी गई जानकारी से उस का चेहरा उदास और गुस्से में बदल गया.रमेश और रमन वापस आ गए. दूसरे दिन रमेश टाइगर को अपना मित्र बना कर घर ले गया. उस की पत्नी विभा जब किचन में गई, तब टाइगर ने खुफिया कैमरा लगा दिया. दूसरे दिन की शाम को रमेश ने कैमरा टाइगर को सौंप दिया. तीसरे दिन टाइगर ने सुबूत बना कर रमेश को सीडी सौंप दी. उस के आशिक का नाम, कामधाम सब का ब्योरा बना कर दिया. रमेश ने बकाया 30 हजार रुपए धन्यवाद सहित जासूस टाइगर को सौंपे. सुबूत और जानकारी हाथ लगते ही रमेश को अंदर ही अंदर तसल्ली मिली और साथ में ताकत भी.