फिर उस ने उस वृद्ध का नंबर पूछा और अपने फोन से मिला कर उसे फोन कर दिया. वृद्ध का फोन बजा तो उस ने उसे सेव कर लिया.
‘‘अगर किसी कारण मैं इसे रख न सकी तो आप को वापस दे जाऊंगी. कम से कम यह जीवित तो रहेगा.’’
‘‘आप इसे बस से तो ले जा नहीं सकेंगी. बस वाले इसे भीतर नहीं ले जाने देंगे,’’ वृद्ध ने पूछा, ‘‘तब?’’
‘‘आटो कर लूंगी,’’ संक्षेप में कह वह सड़क की तरफ पलटी और एक खाली आटो ले अपने घर चल दी.
रास्ते में सोचती भी रही, अगर कल को नौकरी पर जाने लगी तो यह अकेला फ्लैट में कैसे रहेगा? अपने खाने की तो उसे बहुत चिंता नहीं होती पर इस के लिए तो कुछ न कुछ बनाना ही पड़ेगा. किसी जानवर को घर लाना आसान है, पर उसे पालना, उस के खानेपीने का प्रबंधन, पूरे एक बच्चे का पालना और उस का खयाल रखना है. वह वृद्ध सही कह रहा था, अगर न पाल सकी तो इसे उसी महल्ले में छोड़ना पड़ेगा. कम से कम जिंदा तो रहेगा.
रास्ते में पडे़ बाजार से सुलभा ने उस कुत्ते के लिए गले का पट्टा और जंजीर खरीदी. पानी के लिए एक बड़ा बरतन खाने के लिए घर में कटोरा था ही. पौटी के लिए क्या करेगी, सुबह इसे ले कर सड़क पर जाना पड़ेगा, वह यह सोचतेसोचते अतीत में चली गई.
पिता जब मां को अकेला छोड़ कर दूसरी औरत के पास चले गए तो मां पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. कुल हाईस्कूल पास थीं. न कोई टे्रनिंग न हुनर. वे 2 बहनें और एक छोटा भाई, 3 बच्चों को अकेली मां कैसे पाले, कई दिनों तक मां कुछ सोच ही नहीं पाईं. परंतु उन्होंने जिंदगी का सामना बड़ी बहादुरी से किया.