मु?ो रमेश को साफसाफ कह देना चाहिए था कि यह सब नहीं हो सकता. हमें यह सब करना शोभा नहीं देता पर मैं यह क्यों नहीं कह पाई. वह कौन सी शक्ति थी जो मु?ो यह सब कहने से रोक रही थी. कहीं मु?ो भी उन से प्यार तो नहीं हो गया है. उस ने स्वयं से प्रश्न किया. प्रतिउत्तर में सीमा का दिल जोरजोर से धड़कने लगा और उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.
अब फोनों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. ऐसे ही एक मुलाकात में रमेश ने सीमा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘सीमा क्या हमतुम एक नहीं हो सकते?’’
‘‘मगर कैसे? आप भी शादीशुदा हैं और मैं भी. एकदूसरे को पसंद करना तो किसी हद तक ठीक है परंतु इस के आगे कुछ सोचना हमारे लिए ठीक नहीं होगा,’’ सीमा ने रमेशजी से कहा.
‘‘इश्क में ठीक और गलत किस ने देखा है. जानती हो जब किसी से प्यार हो जाता है तो वह उस पर अपना पूरा अधिकार सम?ाने लग जाता है और उसे पूरा पाना चाहता है. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. क्या तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो रहा है?’’
रमेश की बात सुन कर एक क्षण तो सीमा का मन किया कि वह भी चीखचीख कर कह दे हां मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा है क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक है परंतु सामाजिक मर्यादाओं और इतने वर्षों सतीश के साथ सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत करने के बाद उसे ऐसा बोलना विवेकहीन लग रहा था.
वह बोली, ‘‘रमेश हमारे चाहने या न चाहने से सबकुछ नहीं होता. यदि हो भी जाए तो इस में कौन सी भलाई है? हम अपनी एक छोटी सी इच्छा पूरी करने के लिए सबकुछ दांव पर तो नहीं लगा सकते?’’