हाथमुंहधो कर राजीव कल्पना के साथ खाना खाने बैठा ही था कि मेड बीना ने भीतर आ कर कहा, ‘‘साहब, बाहर एक साहब खड़े हैं, वे अपनेआप को मेमसाहब का परिचित बताते हैं.’’
‘‘अरे, तो उन्हें सम्मानपूर्वक अपने साथ क्यों नहीं ले आई? भला यह भी कोई पूछने की बात थी?’’ राजीव ने प्लेट में सब्जी डालते हुए हाथ रोक कर कहा. इस के साथ ही उस ने कल्पना की ओर देखा.
कल्पना चौंक उठी. अचानक उस के शरीर में कंपकपाहट सी दौड़ गई. उस ने कल्पना की ओर देखा.
कल्पना चौंक उठी. अचानक उस के शरीर में कंपकंपाहट सी दौड़ गई. उस ने सोचा, बिना सूचित किए एकाएक यह कौन आ टपका.
‘‘हैलो,’’ आगंतुक को यह कहते ही कल्पना हैरान रह गई. सामने खड़े जने के आने की तो उसे स्वप्न में भी आशा नहीं थी. उसे आगंतुक के ‘हैलो’ का जवाब देने का भी खयाल नहीं रहा.
मंदमंद मुसकराता राजीव कल्पना के चेहरे पर आतेजाते भावों को ध्यान से देख रहा था. उस के लिए आगंतुक का सिर्फ इतना ही परिचय काफी था कि वह कल्पना का परिचित है. उस ने सोफे से उठ कर उत्साहपूर्वक आगे बढ़ कर आगंतुक से हाथ मिलाया और उसे अपने निकट ही सोफे पर स्थान देते हुए आत्मीयता से बोला, ‘‘आइए, वैलकम.’’
‘‘थैंक्यू,’’ आगंतुक ने बे?ि?ाक बैठते हुए कहा.
कल्पना अब भी उसे विस्फारित नेत्रों से देखे जा रही थी.
वह उत्साह भरे स्वर में बोला, ‘‘कल्पना, यह क्या बजाय हमारा इंट्रोडक्शन कराने के तुम मु?ो इस तरह देख रही हो जैसे मैं कोई भूत हूं.’’
कल्पना ने तुरंत संभल कर मुसकराने की कोशिश करते हुए राजीव से कहा, ‘‘राजीव, इन से मिलो, ये हैं मेरे बचपन के साथी व कालेज के क्लीग कमल.’’