घर आ कर निशा ने अपनी सास की चोट पर मरहम लगाया. इस दुर्घटना की खबर मिलते ही बिलाल के अब्बूजान घर लौट आए. उन सब के सामने निशा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘अब्बूजान, मेरे भाइयों ने ही हमारे बुटीक पर पत्थर फेंके थे. आप मेरे बारे में मत सोचिए. उन्होंने जो किया, गलत किया और आप पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए.’’ निशा की बातें सुन कर सब ने अब्बूजान की ओर देखा क्योंकि फैसला लेने वाले वे ही थे.
‘‘ठीक है जुबैदा, तुम अभी आराम करो. कल से बुटीक के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड रखेंगे. तुम दोनों औरतें अकेले में ऐसी हालत को नहीं संभाल पाओगी. इसलिए एक गार्ड की जरूरत है.’’ उन की बातों से यह स्पष्ट था कि वे इस मामले को पुलिस तक ले जाना नहीं चाहते हैं. मगर निशा ने उन के पास जा कर सहम कर कहा, ‘‘अब्बूजान, मैं आप से निवेदन करती हूं कि आप मेरे भाइयों को माफ मत कीजिए. उन्होंने जो भी किया वह बिलकुल गलत है. अगर आप इस बार उन्हें माफ करेंगे तो उन की जुर्रत और बढ़ जाएगी. इसलिए आप उन के खिलाफ पुलिस में शिकायत करा दीजिए.’’
‘‘मैं तुम्हारे जज्बे को समझ सकता हूं बहू, मगर हमें इस मामले में सावधानी बरतनी होगी. जिन्होंने यह हरकत की, वे तुम्हारे भाई हैं. आज नहीं तो कल, हम एक परिवार हो जाएंगे. अगर हम आज जल्दबाजी में पुलिस के पास गए तो हमारे रिश्ते में दरार आ जाएगी. हमें सब्र से काम लेना चाहिए. उन दोनों को एक न एक दिन अपनी गलती का एहसास होगा. हम उस दिन का इंतजार करेंगे.’’ उन के बड़प्पन के सामने अपने पिता की हरकतों को याद कर निशा की आंखें नम हो गईं.