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आभा ने अपनेआप को इतना भारहीन पहले कभी भी महसूस नहीं किया था. कहना तो यों चाहिए कि अब तक वह अपनी चेतना के ऊपर जो एक दबाव महसूस किया करती थी, आज उस से आजादी पाने का दिन था. आज उस ने रमन को अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया था. कंधों पर टनों बोझ लदा हो तो यात्रा करना आसान नहीं होता न? आभा भी अपनी आगे की जीवनयात्रा सुगम करना चाहती थी.

“रमन, कुछ कहना है आप से. समय निकाल कर फोन करना,” आभा ने रमन के मोबाइल पर मैसेज छोड़ा. आशा के अनुकूल 2 दिन बाद रमन का फोन आया,"अरे यार, क्या बताऊं? इन दिनों कुछ ऐसी व्यस्तता चल रही है कि समय ही नहीं मिल रहा. बेटीदामाद आए हुए हैं न. हां, तुम बताओ क्या कहने के लिए मैसेज किया था?” रमन के स्वर में अभी भी एक जल्दबाजी थी. आभा कुछ देर चुप रही मानो खुद को एक बड़े द्वंद्व के लिए तैयार कर रही हो.

“मुझ से अब यह रिश्ता नहीं निभाया जाएगा. मैं थक गई हूं,” आभा एक ही सांस में कह गई.

अब चुप होने की बारी रमन की थी. शायद वह आभा के कहे शब्दों का अर्थ तलाश करने के लिए समय ले रहा था. जैसे ही उसे आभास हुआ कि आभा क्या कहना चाह रही है, वह छटपटा गया,"यह क्या बकवास है? ऐसा क्या हो गया अचानक? सब कुछ ठीक ही तो चल रहा है? मैं ने तुम से पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस से अधिक मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाऊंगा, फिर आज अचानक यह कैसी जिद है?” रमन ने अपने कथन पर जोर दे कर उसे पुष्ट करते हुए कहा. आभा कुछ नहीं बोली. शायद दर्द की अधिकता से गला अवरूद्ध हो गया था.

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