इधर बेटे के गम में कल्याणी की हार्टफेल हो जाने से मृत्यु हो गई और कुछ साल बाद जय भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. पूरा घर तितरबितर हो गया. निखिल भी अपने परिवार के साथ कहीं और रहने चला गया.
देव की बदचलनी की बात सुन कर तनिका के मातापिता ने भी उस की शादी कहीं और कर दी. अपनी दयनीय स्थिति पर स्वयं देव को भी तरस आ रहा था. सोचता वह कि आखिर उस ने ऐसा किया ही क्यों रमा के साथ? अगर नहीं किया होता तो आज सबकुछ सही होता. कोसता रहता वह अपनेआप को. मन तो करता उस का कि खूब चीखेचिल्लाए और कहे कि उसे फांसी पर लटका दिया जाए क्योंकि अब उसे जीने का कोई हक नहीं है.
अपने दोस्त मनोज को याद कर के वह रो पड़ता और सोचता कि शायद वह भी मुझ से घृणा करने लगा है. नहीं तो क्या एक बार भी वह मुझ से मिलने नहीं आता? लेकिन उस रोज मनोज आया उस से मिलने और जो उस ने बताया उसे सुन कर देव के पैरों तले की जमीन खिसक गई.
बताने लगा वह कि देव गलत नहीं है बल्कि उसे फंसाया गया है और यह सब रमा का कियाधरा है.
‘‘पर तुम्हें यह सब कैसे पता?’’
देव के पूछने पर मनोज कहने लगा कि एक दिन जब किसी काम से वह उस के घर गया, तब रमा को प्रीति से कहते सुना, ‘‘देख लिया न दीदी, मु?झो न कहने का अंजाम. अरे, मैं उस देव से प्यार करती थी सच्चा प्यार और वह उस तनिका से शादी के सपने देखने लगा. तो बताओ मैं कैसे बरदाश्त कर पाती. पहले तो सुन कर मैं घर वापस चली गई और बहुत रोईकलपी, फिर लगा जो मेरा नहीं हो पाया उसे मैं किसी और का बनता कैसे देख सकती हूं भला. बस उसी दिन ठान लिया मैं ने कि मु?झो क्या करना है.’’