कुछ ही देर में नव्या और नैवेद्य रिवर वौक जाने के लिए घर से निकल पड़े. शाम का धुंधलका गहराता जा रहा था.
दोनों नदी किनारे उगी घास पर लगी
कुरसियों को एक कोने में खींच उन पर बैठ गए.
नदी के सामने आसमान छूती अट्टालिकाओं पर जलतीबुझती इंद्रधनुषी
लाइटें, नीले पानी में तैरते पानी के जहाज, सामने आकाश में ढलता हुआ सिंदूरी सूरज, समां बेहद खूबसूरत थी.
तभी नव्या ने कहना शुरू किया, ‘‘नैवेद्य,
मैं एक
विधवा हूं. मेरे पिता ने मेरी शादी महज
16 साल की उम्र में कर दी थी. शादी के मात्र एक साल बाद मेरे पति की मौत हो गई.’’
‘‘ओह, आई ऐम सो सौरी.
बसबस नव्या, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं तुम्हें शिद्दत से चाहता हूं और मेरी चाहत में ऐसी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.’’
‘‘उफ नैवेद्य,
पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो. मैं एक बेहद गरीब परिवार से हूं. मेरे फादर यूपी के एक छोटे से कसबे में रिकशा चलाते हैं. मेरी 2 छोटी बहनें और 1 भाई है. दोनों
बहनें एमबीबीएस के दूसरे ईयर में और भाई फर्स्ट ईयर में है. पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. तीनों की मोटी फीस और घर खर्चे में मेरी आधी से ज्यादा तनख्वाह खर्च हो जाती है. तो अपने पास्ट और अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं ताजिंदगी किसी रिलेशनशिप में बंधना नहीं चाहती. मैं नहीं सोचती कि कोई भी लड़का इन
सब के साथ मुझ से रिश्ता बनाना चाहेगा.
‘‘साथ ही मेरी और तुम्हारी दुनिया में जमीनआसमान का फासला है. तुम एक रईस खानदान से हो और मैं महज एक गरीब रिकशा चलाने वाले की बेटी. हम दोनों का कोई साझा भविष्य नहीं.’’