लेखक- सुधीर मौर्य
भले ही अजंता के दिल में अब भी प्रशांत के लिए मुहब्बत के जज्बात न जगे हों पर वह उस का होने वाला पति था, इसलिए उस का मुसकरा कर स्वागत करना लाजिम था. भीतर आ कर प्रशांत उसी सोफे पर बैठ गया जहां कुछ देर पहले शशांक बैठा था. प्रशांत के लिए फ्रिज से पानी निकालते हुए अजंता सोच में पड़ गई कि अगर प्रशांत कुछ देर पहले आ जाता और शशांक के बारे में पूछता तो वह क्या जवाब देती.
‘‘बाहर तो काफी धूप है?’’ अजंता ने पानी देते हुए प्रशांत से जानना चाहा.
पानी पीते हुए प्रशांत ने अजंता को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर गिलास उस के हाथ में देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें मना किया था न ये शौर्ट कपड़े पहनने के लिए.’’
‘‘ओह हां, बट घर में पहनने को तो मना नहीं किया था,’’ अजंता ने कहा और फिर बात बदलने की गरज से झट से बोली, ‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’
‘‘चाय,’’ प्रशांत सोफे पर पसर और्डर देने के अंदाज में बोला. अजंता किचन की ओर जाने लगी तो प्रशांत ने कहा, ‘‘अजंता मैं चाहता हूं तुम इस तरह के कपड़े घर पर भी मत पहनो.’’
‘‘अरे, घर में इस ड्रैसिंग में क्या प्रौब्लम है और फिर आजकल यह नौर्मल ड्रैसिंग है. ज्यादातर लड़कियां पहनना पसंद करती हैं,’’ चाय बनाने जा रही अजंता ने रुक कर प्रशांत की बात का जवाब दिया.
‘‘नौर्मल ड्रैसिंग है, लड़कियां पसंद करती हैं इस का मतलब यह नहीं कि तुम भी पहनोगी?’’ प्रशांत के स्वर में थोड़ी सख्ती थी.