और उसी समय रश्मि को लगा, जैसे उस से कोई भारी भूल हो गई है. आगंतुक को देखे बिना बेढंगेपन से बोलने के बाद और आगंतुक को देख लेने के पश्चात उस के चेहरे पर अजीब सा परिवर्तन आ गया. उस की माथे की सलवटें विलीन हो गईं और उस का रौद्र रूप परिवर्तित हो कर असमंजस की स्थिति में पहुंच गया. वह आगंतुक को निहारती ही रह गई. उस की क्रुद्ध आंखें सहज हो कर आगंतुक पर जा टिकीं. वह सूरज था, उस का भाई. उस का परिवार भी इस शहर में ही रहता था. उस की शादी इसी शहर में हो गई थी, जिस परिवार के लोगों से यदाकदा वह मिल सकती थी. सच तो यह था कि परिवार के यहां होने से ही उस की हिम्मत कुछकुछ बाकी थी, नहीं तो सुंदरम के दैनिक कार्यक्रम से तो वह पूरी तरह टूट ही चुकी होती.
परिवार के किसी भी सदस्य से मिल कर उसे बेहद शांति और प्रसन्नता महसूस होती थी. किंतु इस समय ऐसी कोई बात नहीं थी कि भाई को देख कर वह प्रसन्न होती. समय आधी रात का जो था.
जैसे किसी को आशंकाओं के बादल कड़क कर भयभीत कर दें, ऐसी स्थिति से घिरी रश्मि शीघ्रता से बोल उठी, ‘‘सूरज, तुम! इतनी रात गए?’’
‘‘दीदी, दीपू की हालत बहुत खराब है. जीजाजी कहां हैं? उन से कहिए, जल्दी चलें,’’ सूरज ने डरे हुए स्वर में कहा.
‘‘क्या हुआ दीपू को?’’ रश्मि ने अपने छोटे भाई के बारे में पूछा. एकाएक उस की घबराहट बढ़ गई.
‘‘यह तो जीजाजी ही देख कर बता सकेंगे. दीदी, उन्हें जल्दी चलने को कहिए,’’ सूरज बोला, ‘‘समय बताने का भी नहीं है.’’ एकाएक रश्मि लड़खड़ा गई. कड़ाके की सर्दी में भी उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमक उठीं. पूरा शरीर जैसे मूर्च्छित अवस्था में पहुंच गया. उस के आगे अपने भाई दीपू का चेहरा घूमने लगा, प्याराप्यारा, भोलाभाला सा वह मासूम चेहरा.