लेखिका- मेहा गुप्ता
यह कहानी है दिल्ली के प्रसिद्ध लेडी श्रीराम कालेज की, जहां मुसकान अपनी 3 सीनियर्स के साथ गर्ल्स होस्टल में रहती थी. उस का पहली मेरिट लिस्ट में ही एडमिशन हो गया था. वह बहुत ऐक्साइटेड थी, क्योंकि लाखों युवा दिलों की तरह उस का भी सपना था कि वह इस कालेज में पढ़ कर अपने सपने पूरे कर पाए. वह मेरठ से थी.
शुरू में तो उसे महानगर की चकाचौंध का हिस्सा बनने में वक्त लगा था, पर उस की रूममेट्स के अत्यधिक कूल होने के कारण जल्दी ही उस की तीनों के साथ अच्छी जमने लगी थी. कौफी बनाना, बाजार से छोटेमोटे सामान लाना, यहां तक कि अपनी दीदी के कपड़े धोना तक के काम उस के ही हिस्से में थे. वे उस की मेंटर, गाइड और बड़ी बहनें थीं. उन की गाइडेंस में ही उस की फुल जींस घुटनों तक की शार्ट्स और टौप्स की साइज कटते हुए क्रॉप टौप पर और आस्तीन तो गायब ही हो गई थी.
सालभर में ही वह अपने नए हैयरस्टाइल और स्वैग के साथ अपनी घरेलू और डेढ़ फुटी इमेज से बाहर निकल कर एक बेहद ही खूबसूरत दोशीजा में बदल गई थी... जिसे देखते ही किसी के भी मुंह से अनायास ही 'सो क्यूट' निकल जाया करता था. ऊपर वाले ने उसे बला की खूबसूरती से नवाजा
था. वह सिर्फ जबान से ही नहीं बोलती थी... उस की बोलती तीखी आंखों के साथ उस के कानों में पहनी जाने वाली बड़ीबड़ी बालियां भी उस के बोलने पर, मुसकराने पर चहक उठती थीं. वह अन्य लड़कियों से बिलकुल अलग थी. लड़कों से कतराने वाली, कालेज कैंपस की रंगीन चकाचौंध से अलगथलग रहने वाली और हर वक्त किताबों में डूबी रहने वाली.