शुरूशुरू में वह क्लब में डांस करने में हिचकिचाती थी. उस समय मैं ने ही उसे बहुत संबल दिया. मेरे प्रोत्साहित करने पर धीरेधीरे वह खुलने लगी और जल्द ही वह पार्टी में आकर्षण का केंद्र बनती चली गई. तब मुझे बुरा नहीं लगा था.
मैं अपने सहकर्मियों के बीच गर्व महसूस करने लगा था, यह सोच कर कि सब की बीवियों में मेरी बीवी ही इतनी सुंदर और आकर्षक है.
अब सोचता हू कि शायद मैं ने वहीं गलती कर दी. यदि मैं उसे वहीं रोक देता, मैं उसे वहीं समझ जाता, तो शायद इतनी बात नहीं बढ़ती. परंतु नहीं मुझे बाद में समझ आया कि प्रीति बंध कर रहने वाली इंसान नहीं थी, वह तो स्वतंत्र आकाश में उड़ान भरने वाला परिंदा थी. उस ने घर की परिधि में रहना नहीं सीखा था. यहां आ कर उसे उड़ने के लिए खुला आसमान मिल गया था.
उसे सजनासंवरना, मौजमस्ती करना, सैरसपाटे, होटलों में खाना और शौपिंग करना बहुत पसंद था. शुरूशुरू में उस के मोह में यह सब मुझे भी गलत नहीं लगता था. लेकिन हर बात की जब अति हो जाती है तब वही बात बुरी लगने लगती है.
यहां आए अभी कुछ दिन ही हुए थे. एक दिन उस ने कहा, ‘‘जानू हम शादी के बाद कहीं हनीमून पर नहीं गए.’’
‘‘चलो न कहीं चलते हैं,’’ मैं भी उसे मना नहीं कर सका, ‘‘तुम बताओ कहां चलना है.’’
‘‘जहां तुम कहो, चलते हैं,’’ और उस के कहने पर हम दोनों ने कश्मीर का ट्रिप प्लान किया.
फिरदौस ने सच ही कहा है कि कश्मीर धरती का स्वर्ग है. यह वहां जा कर ही जाना. हरीभरी वादियां, कलकल बहती नदियां, बर्फ से ढके पर्वत मन मोह लेते. श्रीनगर में डलझल, शिकारे और गुलमर्ग, सोनमर्ग के बर्फीले पहाड़, फूलों से लदे बगीचे, देवदार के ऊंचेऊंचे वृक्ष आदि सभी कुछ बहुत ही मनमोहक. वह उन नजारों में खो कर रह गई. जगहजगह घूमना, फोटो खिंचाना उस का शौक था.