"मम्मा... मम्मा...," नन्हे की घुटीघुटी चीखें सुन कर मां बानी दौड़ीदौड़ी ड्राइंगरूम में आई, जहां वह अपने 4 साल के बेटे को आया की निगरानी में छोड़ कर गई थी. उस ने वहां जो दृश्य देखा, सदमे से उस की खुद की चीख निकल गई.
उस के सगे बड़े भाई और पिता कमरे में थे. भाई ने एक तकिए से नन्हे के मुंह को दबाया हुआ था, साथ खड़े पिता क्रोध से जलती लाल अंगारा आंखों से दांत पीसते हुए उस से कह रहे थे, "ज़ोर से भींच, और जोर से कि इस संपोले का काम आज तमाम हो ही जाए."
एक क्षण को तो बानी में समझ ही नहीं आया कि वह क्या करे, लेकिन अगले ही पल वह भाई के हाथों से तकिया छीनते हुए जोर से चीखी, "बचाओ... बचाओ..." कि तभी बिजली की गति से एक लंबा व तगड़ा शख्स ड्राइंगरूम के खुले दरवाजे से कमरे में घुसा. उस ने भाई के हाथों से तकिया जबरन छीन कर एक ओर पटक दिया और नन्हे को उस के चंगुल से मुक्त करा बानी को थमा कर उस से बोला, "आप इसे ले कर भीतर जाइए. कमरे का दरवाजा बंद कर लीजिएगा. मैं इन से निबटता हूं."
इस दौरान पिता उस की ओर मुखातिब हो चीख रहे थे, "पंडितजी ने कहा है, तूने हमारे घर पर अपने पाप की काली छाया डाल रखी है. तेरी वजह से हमारा घर फलफूल नहीं रहा. मेरी नौकरी नहीं रही. इस बड़के की नौकरी भी बारबार चली जाती है. छुटकी का रिश्ता नहीं हो रहा. तेरी और तेरे इस मनहूस की वजह से ही घर पर विपदा आई हुई है, कुलक्षणी."