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नीरजा के चेहरे पर बड़ी प्यारी सी मुसकराहट आई.‘‘बस, इस चौराहे पर रोक लीजिए. मैं यहीं से औटो कर लूंगी.’’

‘‘पर...’’

‘‘रोकिए न प्लीज.’’

उन्होंने गाड़ी रोक ली. नीरजा तुरंत उतर गई. ‘‘फिर मिलते हैं,’’ कहते हुए उस ने दरवाजा बंद किया व सामने ही खड़े औटो में जा बैठी. औटो आगे बढ़ गया. उन्होंने भी गाड़ी घर की तरफ घुमा ली.

अगले 10 दिनों तक उन की लाइब्रेरी जाने की हिम्मत नहीं हुई. फिर उन का एक बाहर का प्रोग्राम बन गया. उन के कार्यकाल के समय में हुई 2 अनियमितताओं की जांच चल रही थी. यह जांच उन के खिलाफ नहीं थी पर जांच अधिकारी ने उन्हें विटनैस बनाया था. जांच का कार्य मुंबई में हो रहा था. सो, उन्हें 15 दिनों के लिए मुंबई जाना था. जाने से पहले उन्हें एक बार लाइब्रेरी जाना था. किताबें वापस करनी थीं वरना देर हो जाती.

वे लाइब्रेरी पहुंचे पर नीरजा नहीं आई थी. वे निराश हो गए व किताबें वापस कर के चले आए. फिर वे मुंबई चले गए. दोनों जांच कमेटियों में अपना विटनैस का काम खत्म करने में उन्हें 20 दिन लग गए. आने के दूसरे दिन ही शाम को 4 बजे लाइब्रेरी पहुंचे.

आज भी नीरजा वहां नहीं थी. वे परेशान हो गए. उस दिन ही उस की तबीयत ठीक नहीं थी. दोएक लोगों से पूछताछ की, पर कुछ पता न चला. तब वे सीधे लाइब्रेरियन के पास पहुंच गए.

‘‘एक्सक्यूज मी,’’ उन्होंने पूछा, ‘‘मुझे आप की नीरजा नाम की ट्रेनी से कुछ काम था. मुझे पता चला है कि वह आज नहीं आई है, वह छुट्टी पर है. क्या आप बता सकती हैं कि वह कब तक छुट्टी पर है?’’

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