अनंत और नेहा का रिसैप्शन सचमुच बड़ा ही शानदार था. सभी नातेरिश्तेदार व सगेसंबंधी इकट्ठे हुए थे. सुरभि गेट पर सभी का स्वागत कर रही थी. तभी शरद अपनी पत्नी के साथ आता दिखा. उस ने हाथ जोड़ कर दोनों का स्वागत किया. उस के होंठों पर मुसकराहट थी, वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी मानो वह शरद को पहचानती ही नहीं है. लेकिन शरद उसे देख कर अचकचा गया, धीरे से बोला, ‘‘सुरभि, तुम?’’ वह शरद की बात को अनसुना कर के दूसरे मेहमानों की ओर बढ़ चली. खिसियाया हुआ शरद उसे बराबर आतेजाते देख रहा था. लेकिन वह उस से किनारा कर रही थी. शरद को बात करने का वह कोई मौका ही नहीं दे रही थी.
अनंत नेहा के साथ घूमफिर कर सभी मेहमानों से मिल रहा था. सुरभि भी सब से अपनी बहू का परिचय करा रही थी, साथ ही, उस की तारीफों के पुल भी बांधती जा रही थी. सभी मेहमान विदा हो गए. रह गए बस शरद और उस की पत्नी सोमा. अब वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कहिए, कैसा लगा सारा इंतजाम आप लोगों को? अपनी ओर से तो मैं ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी.’’
‘‘बहुत ही अच्छा प्रबंध था. आप को देख कर ऐसा लगता है कि मेरी बेटी को बहुत ही समझदार सास मिली है. आइए हम लोग गले तो मिल लें,’’ कह कर सोमा उस के गले लग गई.
सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है, उसे इस बात का तो अंदाजा था कि वह नाराज है किंतु उसे कुछ कहने का मौका तो दे, कहीं ऐसा न हो कि उस की बेवफाई का बदला नेहा से ले, वह इन्हीं विचारों में डूबउतरा रहा था. उन लोगों के रुकने की व्यवस्था सुरभि ने अपने घर के गैस्टरूम में ही की थी.