पिछला भाग पढ़ने के लिए- प्रेम लहर की मौत: भाग-1
लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह
‘‘शायद जरूरत ही महसूस नहीं हुई. या फिर दोनों में से कोई हिम्मत नहीं कर सका. हम दोनों के इस प्यार की मूक साक्षी थी निकी. पर पता नहीं क्यों उस ने भी हमारे प्रेम को एकदूसरे के सामने व्यक्त नहीं किया.’’
‘‘तुम और असीम, कभी मिले नहीं?’’ मैं ने अनु को रोक कर पूछा.
‘‘नहीं, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’ उस ने कहा.
‘‘तुम लोगों की मिलने की इच्छा भी नहीं हुई? एकदूसरे को देखने का भी मन नहीं हुआ?’’ मैं ने पूछा.
‘‘क्यों नहीं हुआ? इच्छा तो होती ही है, लेकिन आधुनिक टेक्नोलौजी थी न जोड़े रखने के लिए हम हर रविवार को वीडियो चैट करते थे. यह मिलने जैसा ही था. आज हमारी पहली और अंतिम रूबरू मुलाकात थी.’’ कह कर वह सहज हंसी हंस पड़ी.
‘‘जब तुम दोनों के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी तो फिर इस में तुम दोनों के अलग होने की बात कहां से आ गई?’’ मैं ने पूछा.
उस ने अपनी बात आगे बढ़ाई.
हम दोनों का एकदूसरे के प्रति प्रेम चरम पर था. अब तक असीम मुझे मुझ से ज्यादा जाननेपहचानने और समझने लगा था. मेरी छोटी से छोटी तकलीफ को बिना बताए ही जान जाता था. कई बार छोटीछोटी बात में मेरा मूड औफ हो जाता था. पर मुझे मनाने में उस का जवाब नहीं था. मुझे हंसा कर ही रहता था. मैं कभी भी उस से झूठ नहीं बोल पाती थी. वह तुरंत पकड़ लेता था कि मैं कुछ छुपा रही हूं. सच्चाई जान कर ही रहता था.