लेखिका- शोभा बंसल
दीपमाया ने अपनी कजरारी आंखों को अपनी लंबी पलकों की आड़ में छिपाते हुए कहा कि वह विवाहित है, सुहागन भी पर तलाकशुदा नहीं. पर वहां ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि माया मैम विधवा हैं और उसे बेहद इज्जत व मान देते हैं.
“मिली, तुम तो जानती हो कि गणित मेरा फेवरेट सब्जैक्ट था."
"हां याद है," मैं ने कहा, "मैं तो सारी इक्वेशन तुम्हारी सहायता से ही सुलझा पाती थी."
यह सुनते ही दीपमाया ने हताशा से कहा, "पर मिली, मैं तो यहीं मात खा गई. रिश्तों के समीकरण/इक्वेशन समझ ही न पाई. पतिपत्नी से जुड़े सवालों के जवाब ढूंढने में ही उलझ कर रह गई. वहां गोवा में तुम थीं नहीं, तो किस की हैल्प लेती, किस से अपनी पीड़ा शेयर करती?" दीपमाया की आंखें भर आईं.
"अब तुम्हारी प्रेम कहानी में गोवा कहां से आ गया?" मैं ने पूछा.
उस ने बताया, "एक दिन हम दोनों (रोजर और दीपमाया) अपनेअपने परिवार वालों का कड़ा विरोध देख घर से पैसागहना ले गोवा भाग आए. यहां रोजर के एक खास मित्र के परिवार ने हमें पनाह दी और हम दोनों की शादी करवा दी. उधर मेरे घरवालों ने जीतेजी मेरा पिंडदान कर सारे संपर्क तोड़ दिए.
"जब शादीब्याह में बड़ों का आशीर्वाद न मिले, तो बद्दुआ तो लग ही जाती है न. इस बात का एहसास मुझे आज तक होता है.
"रोजर मेरी पीड़ा को समझता था. वह मुझे हर तरह से खुश रखने की कोशिश करता. हम दोनों ने घर गृहस्थी की शुरुआत मिलजुल कर की. मैं गणित की ट्यूशन लेने लगी तो रोजर रात को क्लब वगैरह में गिटार बजाता. मैं उस का साथ देने के लिए वहां गाना गाती.