‘‘आंटी, आप को संगीता और संयोगिता में कौन सा नाम अधिक पसंद है?’’ एक दिन अचानक वह हमारी संरक्षक मेरी मम्मी से पूछ बैठी तो लगा कमरे की हवा थम सी गई है. मुंह की ओर खाना ले जाते हुए हमारे हाथों पर बे्रक लग गया.
दोनों ही नाम अच्छे हैं. पर तू क्यों पूछ रही है?’’ मम्मी ने उस की बात पर ध्यान दिए बिना पूछा.
‘‘मुझे तो संगीता बिलकुल पसंद नहीं है. संयोगिता की तो बात ही कुछ और है. कितना रोमांटिक नाम है,’’ कह संगीता ने गहरी सांस ली.
‘‘लो भला... नाम में क्या रखा है... किसी भी नाम से गुलाब तो गुलाब ही कहलाएगा,’’ मम्मी को शेक्सपियर याद आ गया था.
‘‘हां, पर कमल को गुलाब कहने पर भी वह तो कमल ही रहेगा न?’’ संगीता ने तर्क दिया.
‘‘बात तो पते की कह रही है मेरी बेटी. शेक्सपियर से भी अधिक बुद्धिमान है मेरी संगीता. ऐसे ही कोई बोर्ड में टौप नहीं कर लेता,’’ मम्मी निहाल हो उठी थीं. पर हम सब की जान पर बन आई थी.
‘‘फिर शुरू हो गया तेरा संयोगिता पुराण?’’ मम्मी के कक्ष से बाहर जाते ही हम तीनों उस पर टूट पड़े.
‘‘अरे वाह, तुम लोग हो कौन इस तरह की बातें करने वाले? अब क्या संयोगिता का नाम लेना भी गुनाह हो गया,’’ संगीता रोंआसी हो उठी.
‘‘वही समझ ले. हमारे मातापिता को इस काल्पनिक परीकथा की भनक भी पड़ गई तो शीघ्र ही यहां से हम सब का बोरियाबिस्तर बंध जाएगा और हम सब को प्राइवेट परीक्षा देनी पड़ेगी,’’ मैं संगीता पर बरस पड़ी.
‘‘वही तो,’’ नीरजा ने मेरी हां में हां मिलाई.