‘‘आजक्या हुआ मालूम है?’’ उस दिन घर लौटते ही संगीता का उत्साह छलक पड़ा.
‘‘क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.
‘‘पृथ्वी अचानक ही कहने लगा कि तुम्हारा नाम संयोगिता होना चाहिए था. क्या जोड़ी बनती हमारी.’’
‘‘अच्छा? फिर तूने क्या कहा?’’
‘‘मैं क्या कहती? मेरे मन की बात उस की जबान पर? मैं तो दंग रह गई. सच मन को मन से राह होती है. फिर तो मैं ने उसे सब कुछ विस्तार से बताया कि मैं अपना नाम बदल कर संयोगिता रखना चाहती थी पर पापा नहीं माने. वह मेरी बात तुरंत समझ गया. कहने लगा कि वह आगे से मुझे संयोगिता ही बुलाएगा. फिर मैं ने भी कह दिया कि मेरा भी एक सपना है कि मेरा पृथ्वीराज मुझे इतिहास वाले पृथ्वीराज की तरह घोड़े पर उठा कर ले जाए और सब देखते रह जाएं.’’
‘‘हाय, फिर क्या बोला वह?’’ सपना अपनी स्वप्निल आंखों को नचाते हुए बोली.
‘‘एक क्षण को तो वह चुप रह गया. फिर बोला कि उसे तो घुड़सवारी आती ही नहीं. पर मेरे लिए वह कुछ भी करेगा. वह घुड़सवारी भी सीखेगा और मुझे उठा कर भी ले जाएगा. लोग तो प्यार में आकाश से तारे तक तोड़ लाने तक की बात करते हैं. वह क्या इतना भी नहीं कर सकता?’’
अगले दिन संगीता ने हमें पृथ्वीराज से मिलवाया. उस का सुदर्शन व्यक्तित्व देख कर हम तीनों ठगे से रह गए.
‘‘तो आप तीनों हैं संगीता की अंतरंग सहेलियां. आप तीनों के बारे में संगीता ने इतना कुछ बताया है कि मैं बिना किसी परिचय के भी आप तीनों को पहचान लेता,’’ उस ने हमें हमारे नामों से बुला कर हैरान कर दिया.