वे कब पीछे से आ कर चुपके से सब देख रहे थे, यह गुरुशिष्या की जोड़ी को पता ही नहीं चल पाया.
ताप्ती का चेहरा लाल हो गया. आरवी चिल्ला कर बोली, ‘‘पापा, आप कब आए?’’
पता नहीं कैसा खिंचाव था दोनों के बीच... जहां ताप्ती की उदासीनता आलोक को न जाने क्यों आकर्षित करती थी, वहीं आलोक का चुंबकीय आकर्षण भी रहरह कर ताप्ती को अपनी ओर खींचता था.
ताप्ती ने बचपन में भी कभी अपने पिता की सुरक्षा महसूस नहीं करी थी. उस ने हमेशा अपने पापा को एक हारे हुए इंसान के रूप में देखा था. जब मरजी आती वे घर आते और जब मन नहीं करता महीनोंमहीनों अपनी महिला और पुरुष मित्रों के पास पड़े रहते. ताप्ती से उन्हें कोई लगाव है या नहीं, उसे आज तक पता नहीं चल पाया.
जब उस की मम्मी को कैंसर डायग्नोज हुआ था, वे फिर उन की जिंदगी से गायब हो गए. जब भी कोई जिम्मेदारी आती तो वे ऐसे ही महीनों गायब हो जाते थे. ताप्ती कभीकभी सोचती कि मम्मी ने इस आदमी से प्यार करने की बहुत भारी कीमत चुकाई है.
आनंदी ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सत्य से कोर्ट में विवाह किया था. एक प्रेमी के रूप में वे जितने अच्छे थे, पति बनते ही गृहस्थी की जिम्मेदारियों से वे भागने लगे. दरअसल, शादी के बाद ही आनंदी को एहसास हो गया कि वे शादी के लिए बने ही नहीं हैं. आनंदी मन ही मन अपने गलत लिए गए फैसले पर घुलती रही और तभी असमय कैंसररूपी दीमक उन्हें चाट गई.