लेखक- विनय कुमार पाठक
“मिस्टर प्रभाकर की स्थिति बहुत नाजुक है. हम ने बहुत कोशिश की उन्हें ठीक करने की. पर किसी प्रकार के अंधेरे में आप को रखना उचित नहीं होगा. अब वे शायद 1-2 दिनों से ज्यादा जिंदा न रह सकें,” डाक्टर ने प्रभा से कहा.
प्रभा सन्न रह गई. प्रभा और प्रभाकर की जोड़ी क्या सिर्फ 1 वर्ष के लिए थी? बीते लमहे उस के मस्तिष्क में कौंधने लगे. पर अभी उन लमहों को याद करने का समय नहीं था. प्रभाकर को बचाने में डाक्टर अपनी असमर्थता जता चुके थे. पर प्रभा अपने पति प्रभाकर को किसी भी हाल में वापस पाना चाहती थी,“मैं प्रभाकर के बच्चे की मां बनना चाहती हूं, डाक्टर. क्या आप मेरी मदद करेंगे?” प्रभा ने अनुरोध भरे स्वर में कहा.
“देखिए, मैं आप की भावना को समझ सकता हूं. पर यह संभव नहीं है,” डाक्टर ने असमर्थता जताई.
“क्यों संभव नहीं है? वह मेरा पति है. मैं उस के बच्चे की मां बनना चाहती हूं. अब क्या मैं आप को बताऊं कि आज के उन्नत तकनीक के जमाने में यह संभव है कि आप प्रभाकर के स्पर्म को इकट्ठा कर सुरक्षित रख दें. बाद में ऐसिस्टैड रीप्रोडक्टिव तकनीक से मैं मां बन जाऊंगी,” प्रभा ने मायूस होते हुए कहा.
“यह मुझे पता है प्रभाजी. पर प्रभाकर अभी अचेत हैं. बगैर उन की मरजी के उन का स्पर्म हम नहीं ले सकते. यह कानूनी मामला है,” डाक्टर ने असमर्थता जताई.
“कोई तो उपाय होगा डाक्टर?” प्रभा तड़प कर बोली.
“एक ही उपाय है, कोर्ट और्डर,” डाक्टर ने कहा,"पर इस के लिए समय चाहिए और शायद प्रभाकर 1-2 दिनों से अधिक जीवित नहीं रह सकें.