काश खड़ूस समर से पहले यह मिल गया होता मम्मीपापा को... ऐसे की ही तो तलाश थी मुझे.. तो जिंदगी गा उठी होती मेरी,’’ उस ने लंबी सी सांस ली.पति समर का खयाल आते ही उस का मन कसैला होने लगा. अच्छा ही तो हुआ
पिछले महीने की 22 तारीख को उस से सारी कार्यवाही पूरी हो कर तलाक मिल गया और मुझे उस बगैर दिल के जंगली रईस से सदा के लिए मुक्ति मिल गई. एक तो बदमाश ऊपर से पहले से शादीशुदा था. उस से भी तलाक हुआ था, जिस से उस का एक 6 साल का बेटा भी था. मेरे सीधेसादे मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर मुझ से शादी रचा ली. कितना बड़ा धोखेबाज था... सोच में गुम वह अमन के ‘वैलकम’ कहने पर तंद्रा से लौट आई...
‘‘भूल ही गया...’’ उस ने जेब में हाथ डाला... यह लैटर... यह उसी रिनी मैडम का खत फिर मेरे घर...
‘‘वह तो आप की दोस्त हैं. इन्हें तो आप अपना सही अड्रैस बता सकती हैं...’’ पहले भी तो कितनी बार कह चुका है फिर कहने की हिम्मत नहीं हुई. जाने कब कौन मेरे फ्लैट में सरका जाता है मिले तो अच्छे से बताऊं उसे... फिर आजकल फोन की सुविधा है कोई लैटर कहां लिखता है... इन की दोस्त भी अजीब हैं. नीची निगाह किए कुछ सोचते शरमीले अमन को देख वह मुसकरा उठी. इसे यों सताने में उसे बहुत मजा आता. वह गुनगुना उठी, ‘‘आप यों ही अगर हम से मिलते रहे देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा....’’ फिर बोली, ‘‘मैं ने बताया था न बेचारी बहुत गरीब है... शराफत में... वह मेरे बचपन की सहेली थोड़ी दिमाग से हटी हुई है. एक दिन मैं आप के दरवाजे तक ही पहुंची थी उस ने मुझे देख लिया और यही मेरा घर समझ लिया. किसी बच्चे से ड्रौप करवा देती है मुझ से मिलती भी नहीं बस अपनी भावनाएं लैटर से शेयर कर देती है अपना पता भी नहीं बताती कि मैं जा कर उसे सही क्या है बता सकूं... अपनी दोस्त दर्शाया संचालित अपने नाटक पर वह मन ही मन मुसकरा उठी.