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अभी तक तो नरेन स्वयं जा कर स्वामीजी के निवास पर ही मिल आता था, पर उसे नहीं मालूम था कि इस बार नरेन इन को सीधे घर ही ले आएगा.

वह लेटी हुई मन ही मन स्वामीजी को जल्दी से जल्दी घर से भगाने की योजना बना रही थी कि तभी डोरबेल बज उठी. ‘लगता है बच्चे आ गए‘ उस ने चैन की सांस ली. उस से घर में सहज नहीं रहा
जा रहा था. उस ने उठ कर दरवाजा खोला. दोनों बच्चे शोर मचाते घर में घुस गए. थोड़ी देर के लिए वह सबकुछ भूल गई.

शाम को नरेन औफिस से लगभग 7 बजे घर आया. वह चाय बनाने किचन में चली गई, तभी नरेन भी किचन में आ गया और पूछने लगा, “स्वामीजी को चाय दे दी थी...?”

“किसी ने कहा ही नहीं चाय बनाने के लिए... फिर स्वामी लोग चाय भी पीते हैं क्या..?” वह व्यंग्य से बोली.

“पूछ तो लेती... ना कहते तो कुछ अनार, मौसमी वगैरह का जूस निकाल कर दे
देती...”

रवीना का दिल किया फट जाए, पर खुद पर काबू रख वह बोली, “मैं ऊपर जा कर कुछ नहीं पूछूंगी नरेन... नीचे आ कर कोई बता देगा तो ठीक है.”

नरेन बिना जवाब दिए भन्नाता हुआ ऊपर चला गया और 5 मिनट में नीचे आ गया, “कुछ फलाहार का प्रबंध कर दो.”

“फलाहार...? घर में तो सिर्फ एक सेब है और 2 ही संतरे हैं... वही ले जाओ...”

“तुम भी न रवीना... पता है, स्वामीजी घर में हैं... सुबह से ला नहीं सकती थी..?”

“तो क्या... तुम्हारे स्वामीजी को ताले में बंद कर के चली जाती... तुम्हारे स्वामीजी हैं,
तुम्हीं जानो... फल लाओ, जल लाओ... चाहते हो उन को खाना मिल जाए तो मुझे मत भड़काओ...”

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