शादी से पहले सुधा के मन में हजार डर बैठे थे, सास का आतंक, ससुर का खौफ, ननदों का डर और देवर, जेठ से घबराहट, पर शादी के बाद लगा बेकार ही तो वह डरतीघबराती थी. ससुराल में सामंजस्य बनाना इतना मुश्किल तो नहीं.
वैसे सुधा बचपन से ही मेहनती थी, शादी हुई तो जैसे सब को खुश करने का उस में एक जुनून सा सवार हो गया. सब से पहले जागना और सब के बाद सोना. सासननदों के हिस्से के काम भी उस ने खुशीखुशी अपने सिर ले लिए थे. जब रोजमर्रा की जिंदगी में यह हाल था तो रीतानीता की शादी का क्या आलम होता. रातरात जाग कर उन की चुनरियां सजाने से मेहंदी रचाने तक का काम भी सुधा ने ही किया.
औरों के लिए रीतानीता की शादी 2-4 दिन की दौड़धूप भले ही हो पर सुधा के लिए महीनों की मेहनत थी. एकएक साड़ी का फाल टांकने से ले कर पेटीकोट और ब्लाउज तक उसी ने सिले. चादरें, तकिया, गिलाफ और मेजपोश जो उस ने भेंट में दिए उन को भी जोड़ लें तो सालों की मेहनत हो गई, पर सुधा को देखिए तो चेहरे पर कहीं शिकन नहीं. सहजता से अपनापन बांटना, सरलता से देना, सुंदरता से हर काम करना आदि सुधा के बिलकुल अपने मौलिक गुण थे.
रीता, सुधा की हमउम्र थी इसलिए उस से ज्यादा दोस्ती हो गई. सुधा की आड़ में रीता खूब मटरगश्ती करती. सहेलियों के साथ गप्पें लड़ाती फिल्में देखती और सुधा उसे डांट पड़ने से बचा लेती. सुधा जब मैले कपड़ों के ढेर से जूझ रही होती तो कभीकभी रीता उस के पास मचिया डाल कर बैठ जाती और उसे देखी हुई फिल्म की कहानी सुनाती. यह सुधा के मनोरंजन का एकमात्र साधन था.