मार्च का महीना शुरू हो चुका था. निष्ठा के पेट पर हलका उभार दिखने लगा था जिसे वह ढीले कपड़ों में छिपाने की कोशिश करती रहती थी. अब उसे इंतजार था अगले महीने का जब मृदुल से उस की शादी हो जाएगी और यह बच्चा, जो अभी तक नाजायज है, फेरे पड़ते ही जायज हो जाएगा.
किसी का सोचा हुआ अक्षरशः कभी हुआ है क्या, जो निष्ठा का सोचा हुआ होता. मार्च का अंतिम सप्ताह आते-आते एक बार फिर से पूरा देश लौकडाउन की स्थिति में आ गया. कहीं पूर्ण तो कहीं आंशिक रूप से शहर और कसबे बंद होने लगे. घबराहट के मारे निष्ठा का बुरा हाल था.
महामारी को रोकने के प्रयास में सख्ती बढ़ाते हुए सरकार ने हर तरह के समारोहों पर रोक लगा दी. बहुत जरूरी होने पर केवल 11 लोगों की उपस्थिति में विवाह समारोह आयोजित किया जा सकता है. मृदुल के घर वालों ने विवाह की तिथि आगे खिसकाने की बात की जिसे निष्ठा के घर वालों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. आखिर सभी चाहते थे कि शादी धूमधाम से और सभी मित्रों, परिजनों की उपस्थिति में ही संपन्न हो.
निष्ठा ने सुना तो उस के पांवों तले से जमीन खिसक गई. अगली तारीख कम से कम तीनचार महीने बाद ही तय होगी. तब तक वह अपना पेट कैसे छिपा सकेगी?
पहले तो निष्ठा और मृदुल ने तय तिथि पर ही शादी करने की जिद की लेकिन जब उन की बात नहीं सुनी गई तो हिम्मत कर के निष्ठा ने अपनी मां से फोन पर बात की. जैसा कि खुद निष्ठा को अंदेशा था, उस के बिनब्याही मां बनने की खबर ने मां के भी होश उड़ा दिए.