दोनों घरों में कुहराम मच गया. लेकिन दोनों के दुख अलगअलग थे. एक परिवार ने अपना जवान बेटा खोया था तो दूस के का मानसम्मान और प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. बेटी के भविष्य के बारे में सोचसोच कर निष्ठा के मांपापा घुले जा रहे थे. मृदुल के तीये की बैठक के बहाने वे उस के घर गए.
"अब क्या सांत्वना दें आप को. हम एक ही नाव के सवार हैं," कहते हूए निष्ठा के पापा लगभग रो दिए. मां के शब्द तो पहले ही आंसुओं में बह गए थे.
"क्या करूं बहन जी, कोई दूसरा बेटा भी तो नहीं वरना निष्ठा बिटिया को बीच राह न छोड़ते," मृदुल की मम्मी ने निष्ठा को कस कर अपने से सटा लिया.
"हम तो जीते जी मर गए. छठे महीने में बच्चा गिरवाएंगे तो बेटी से भी हाथ धो बैठेंगे," कहती हुई निष्ठा की मां फिर से सुबकने लगी. तभी मृदुल की चचेरी भाभी वनिता सामने आई.
"बड़े पापा, यदि आप सब को ठीक लगे तो निष्ठा और मृदुल का यह बच्चा हम अपना लें. वैसे भी, हम लोग अपने बच्चे के लिए प्रयास करतेकरते थक चुके हैं और लौकडाउन खुलने के बाद कोई बच्चा गोद लेने का प्लान ही कर रहे थे." वनिता ने अपने पति रमन की तरफ़ देखते हुए अपनी बात रखी. रमन ने भी सहमति में गरदन हिलाई तो निष्ठा की मां के चेहरे पर उम्मीद की हलकी सी रोशनी चिलकी. सब इस बदली हुई परिस्थिति पर विचार करने लगे.
अंत में तय हुआ कि निष्ठा कुछ समय अपने जौब से ब्रैक लेगी और वनिता तथा रमन के साथ बेंगलुरु जाएगी. वहीं वह अपनी संतान को जन्म देगी और एक महीने के बाद बच्चे को कानूनन वनिता को गोद दे दिया जाएगा. गोद लेने के लिए ‘सेमी ओपन अडौप्शन’ प्रक्रिया का चयन किया जाएगा जिस में बच्चे को सौंपने के बाद निष्ठा उस से नहीं मिलेगी.