"अरे! कहाँ भागी जा रही हो?" दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली.
"मरने जा रही हूँ." दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.
"अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा."सलोनी चुटकी लेते हुये बोली.
"मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है." दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, " अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी."
"अरे हुस्नआरा! इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई ऐतराज न हो तो यह नाचीज उनके साथ चलना चाहती हैं." सलोनी ने दीन-हीन होने का अभिनय करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.
"चल! बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली." सलोनी की पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली," एक तू ही तो है जो मेरा दुख दर्द समझती है."
बातों-बातों मे दोनो पड़ोसन-कम-सहेलियाँ बस-स्टैण्ड पहुँच गयीं.कुछ ही देर मे करोल बाग वाली बस आ गयी.
एक तो ऑफिस टाईम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्का-मुक्की के बीच दोनो सहेलियां बस मे सवार हो गयी.संयोग अच्छा था कि दो सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.
"थैंक गॉड! कुछ तो अच्छा हुआ!" कहते हुये दीपिका सलोनी का हाथ पकड़कर झट से उस खाली बर्थ पर लपककर विराजमान हो गयी.
सलोनी, ''कुछ तो अच्छा हुआ!अरे! ऐसा क्यों बोल रही हो?चल अब साफ-साफ बता क्या हुआ? और यह चाँद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?"
दीपिका, "अरे! क्या बताऊँ? घर मे किसी को मेरी तनिक भी परवाह नही है. मै सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सबकी सेवा करने वाली नौकरानी हूँ."