कहानी- अशोक कुमार
इस पर उस ने कहा था, ‘‘सर, आप का मुझ पर बहुत अधिकार है. अगर आप मेरे सिर पर सौगंध खा कर मुझे वचन दें कि मैं जो कुछ आप को बताने वाली हूं वह आप किसी और को नहीं बताएंगे तो मैं आप को सबकुछ बता सकती हूं.’’
उस के इस कथन पर मैं ने उस के सिर पर हाथ रख कर उसे आश्वासन दिया था. उस ने मेरे पैर छू कर कहा था, ‘‘आप जानना चाहते हैं कि मैं कौन हूं?’’
‘‘हां.’’
‘‘मैं एक आतंकवादी हूं और मेरा काम अपने समाज के लोगों का अहित चाहने वालों को जान से मार देना है. मुझे आप को मारने के काम पर मेरे संगठन ने लगाया था.’’
शर्मिला की बात सुन कर मैं अवाक्रह गया पर पता नहीं क्यों उस से मुझे डर नहीं लगा.
मैं ने कहा, ‘‘शर्मिला, मैं भी दूसरों की तरह यहां दिल्ली के प्रतिनिधि के रूप में ही हूं और तुम लोगों की दृष्टि में मैं भी तुम्हारा दुश्मन हूं. आर्म्ड फोर्सेस, स्पेशल पावर एक्ट का सहारा ले कर तुम लोगों पर एक तरह से शासन ही करने आया हूं. यह सब जानते हुए भी और अनेक मौकों के होते हुए भी तुम ने मुझे नहीं मारा, आखिर क्यों?’’
‘‘क्योंकि आप मेरे अंशू जीजाजी हैं. जीजाजी, मैं तनुश्री दीदी की छोटी बहन हूं. आप को याद होगा, आप तनु दीदी, जो आप के साथ दिल्ली में पढ़ती थी, की शादी में शिलांग आए थे . उन की मौसी की 2 छोटी लड़कियां थीं. एक 12 साल की और दूसरी 10 साल की. आप उन्हें बहुत प्यार करते थे और उन्हें खट्टीमीठी कहते थे. आप खट्टीमीठी को भूल गए होंगे पर हम लोग आप को कभी नहीं भूले.’’